पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२१

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(३) राजा लक्ष्मणसिंह। जालामसिंह यदुवंशी क्षत्रिय थे । जन्म रा प्रागरा, जन्म तिथि , अक्तयर सन् १८२६ । यमे तो घरवालों ने इनकी शिक्षा पर: समय से ध्यान दिया जब से कि ये तोर जिला से योलने लगे थे परंतु पांच वर्ष अवस्था होने पर इन्हें विधियत् विद्यारम्म कराया गया। जब नागरी प्रक्षरों के लिखने का पूरा अभ्यास हो गया तो संस्कृत। फारसी की शिक्षा दी जाने लगी । ये तीवथुशि तो थे ही, बारह की अवस्था तक इन्होंने फ़ारसी और संस्कृत दोनों भाषाओं में छ अनुसार अच्छी योग्यता प्राप्त कर ली । बारह घर्ष की अवस्था यशोपवीत हो जाने पर अँगरेजी भाषा की शिक्षा पाने के लिये। आगरा कालेज में बैठाया गया। उस समय अब की तरह बी. एम ए. प्रादि की परीक्षाएं न होती थी, केयल सानियर, जूनिर परीक्षाएं होती थीं । अस्तु, हमारे चरितनायक ने सीनियर परीय पास की। कालेज में अंगरेजी के साथ इनकी दूसरी भाषा संस्क थी और घर पर ये हिंदी, अरबी और फ़ारसी का अभ्यास किर करते थे। कालेज छोड़ने पर इन्होंने बँगला भी सीख ली। तरह से २४ वर्ष की अवस्था में इन्होंने कई एक भाषाओं में अच्छ योग्यता प्राप्त कर ली। राजा लक्ष्मणसिंह कालेज से निकल कर पधिमोत्तर प्रदेश के छोटे लाट के दफ्तर में सौ रुपए मासिक वेतन पर अनुवाद