पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/२११

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सोला था और उससे तंत्रसंबंधी कई एक ग्रंथ भी छाप कर पछी योग्यता प्राप्त फो। माए जिन जिन भापात्रों को जानते जिन जिन भापात्रों को जानते थे उन सब के दो चार अखबार मंग्यते थे। इसीसे इन्होंने १८-२० वर्ष की अवस्था में अखबार- समादन करने की योग्यता प्राप्त करली थी। इन्होंने साहित्यसरोज, कई अखबारों का सम्पादन किया और उन्हें बड़ो योग्यता से चलाया । आप तंत्रविद्या के बड़े प्रेमी थे। इसलिये आपने तंत्र- सास्त्र के उद्धार करने की इच्छा से तंत्र-प्रभाकर नाम का एक प्रेस (३६) पंडित बलदेवप्रसाद मिश्र । गदाबादनिवासी पंडित बलदेवप्रसाद मिश्र कान्य- मु कुन ग्राह्मण थे । इनका जन्म पौष गुल्ल ११ संयत् १९२६ (सन् १८६९ ईसयो) में हुआ था। इनके पिता का नाम सुखनंदन मिथ्र था। पंडित बलदेयप्रसाद को प्रारंभ में देवनागरी की शिक्षा दी गई थी। हिंदी पढ़ कर इन्होंने अँगरेजी भाषा का अध्ययन प्रारम्भ दिया और उसे समाप्त करके इन्होंने फ़ारसी पोर संस्कृत का अभ्यास दिया। इसके पश्चात् इन्होंने घंगला, महाराष्ट्री पार गुजराती आदि देशभाष्यों का अभ्यास किया और थोड़े ही दिनों में आपने उन ये उनसे हिंदी भाषा में अनुवाद भी अच्छा करते थे और उन्हें बोलते जो सरलतापूर्वक थे । किंवदंती है कि आपने कनाड़ी भाषा का मी किंचित् अभ्यास किया था। पडित वलदेवप्रसाद अगवार पढ़ने के बड़े शौक़ीन थे। आप सत्यसिंधु, भारतवासी, भारतभानु, और सोलजर पत्रिका आदि 1