पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/३९

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( १७ ) गणित का अभ्यास किया और थोड़े होदिनों में परीक्षा पास करके घे ५१) ६० मासिक पाने लगे। इसी प्रकार उन्होंने अपने कठिन परिधम पार अपनी कार्यनिपुणता से अपनी आय १६) ३० से लेकर सात सी ७००) १० मासिक तक बढ़ाई । नवीन. चंद्रराय ने केवल अपना आर्थिक अवस्था ही नहीं सुधारी वरन् इसीके साथ साथ इन्होंने अपनी आध्यात्मिक उन्नति भी खूब की। विधा से इन्हें विशेष प्रेम था। इन्होंने केवल अपनी चेष्टा से अंग- रेजी, हिंदी, उर्दू, फारसी और संस्कृत में असीम योग्यता प्राप्त करली पार पिविध भापायों में विविध विषयों के ग्रंथों को पढ़ कर मनुष्य- जीवन संबंधी यावत् धार्मिक तत्त्वों का पच्चा ज्ञान प्राप्त कर लिया। बायूनयानचंद्रराय, योगी, संन्यासी, कोर, पंडित,मौलवी. पादरो यादि सय मतों के धार्मिक पुरुषों से मिलते और धर्म के तश्यों को जांच किया करते थें। अन्त में इन्होंने एक परब्रह्म पर- मात्मा को हो सघ का नियंता मान फर उसी पर अपनी अदा पार भचि थिरकी। पार नवीनचंद्र राय जैसे सय विषयों के प्रसिद्ध पंडित से ही सदाचारी, जितेंद्रिय पार दानशील भीधे । ये सदा दीन दुनो लोगों को सहायता करने पर शिक्षा का प्रचार फरक देश हित फरने में तत्पर रहने धे। पंजाब में स्त्री-शिक्षा का पोज घोने पाले यही महाराय है । लाहौर में सबसे पुराना नार्मल फीमेल शूल व्हीका स्थापित किया दुपा है। न्होंने लाहौर में सद् विषयों पर पानालाप करने के उद्देश्य से एक सत् सभा पोली थी। पंजाप पिपियालय पर मोरिपरल कालिज के पापप्रधान व्यय. भएक। पंजाब युनिवर्सिटी फलीभी पर तक इन्हों ने प्राविशिटिंग राजस्ट्रार पार सिपळ का काम भी किया था।