(५) डाक्टर ए. एफ. रुडाल्फ हर्नली, सी. आई. ई.। वै से तो डाकर हर्नली योरोप महाद्वीप भर में एक सुप्रसिद्ध विद्वान् पुरुप हैं परहमारे हिंदी-हितैषी महानुभावों में भी मापका मासन सब से ऊंचा है। अपनी मातृभाषा की उन्नति के लिये चेष्टा करना हमारा तो कर्तव्य ही है परंतु आपने विदेशी होकर भी इस ओर विशेष ध्यान दिया पार हिंदी भाषा संबंधी अत्यंत कठिन प्रश्नों के हल करने का उद्योग किया-यह हिंदी के लिये विशेष गौरव मौर सौभाग्य की बात है। डाकर हर्नली के पूर्वज, जर्मन घराने के एक सुप्रसिद्ध वंश से संबंध रखते हैं। इनके पिता रेवरंड सी टो. हर्नली बहुत दिनों तक भारतवर्ष में पादरी थे । डाकर हनली का जन्म १९ अक्टूबर सन् १८४१ को आगरे के पास सिकंदरा में हुपा था । सात वर्ष की अवस्था होने पर डाकर साहिव शिक्षा पाने के लिये जर्मनी को भेज दिए गए। यहां एक सुयोग्य शिक्षक द्वारा कुछ दिन घर पर शिक्षा पाकर स्कूल में भर्ती हुए मार १७ वर्ष की अवस्था तक स्कूलों का अध्ययन समाप्त करके आप सन् १८५८ ई० में प्रोफेसर स्टफेंसर के पास दर्शन शास्त्र का अध्ययन करने लगे और दो वर्ष में दर्शनशास्त्र का अध्ययन समाप्त करके सन् १८६० में आप संस्कृत का अध्ययन करने के लिये लंडन नगर को गए। इसके पांच वर्ष बाद सन् १८६५ में आप काशी के जयनारायण कालिज में अध्यापक नियत होकर भारत-भूमि में सुशोभित हुए । इसी प्रयापक अचस्या में इन्होंने "गौड़ीय भाषा अर्थात्