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(२४) उससे नाता तक तोड़ दिया परंतु इन्होंने उसे हया भी न दो । मातृ-भाषा को प्रोर अविचल भक्ति के कारवये चलाते रहे। याव हरिश्चंद्र कहा करते थे कि हमारे बाद दूसरा ने मह जो का है सो टीक हो था। इनके लिने हुए कलिराज की स- रेल का विकट प्रेल, बाल विवाह नाटक, सी अज्ञान एक सुत्र- नूतन ब्रह्मचारी, जैसा काम यैसा परिणाम, आचार विडंबन भाग्य की परन, पट् दर्शन संग्रह का भाषानुयाद, गीता और स शती की समालोचना, आदि लेन देनने ही योग्य हैं। पंडित बालकृष्ण जी हिंदी के एक सच्चे हितेषु और अर लेखक हैं । आप स्वभाव के सादे सत्यप्रिय सजन हैं। बड़े हँसमुद्र भी हैं। आप सनातन धर्म के अनुयायी हैं, पर मंधपरंपरा के पक्षपार्ट नहीं हैं । आप इस समय कायस्थ पाठशाला में संस्कृत के अध्याप हैं। हिंदीप्रदीप थोड़े दिन हुप कि अस्त हो गया। da