पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/५९

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- को मोरध्यान न दिया पार अपने सिद्धांत पर हद रहे। १८ वर्ष की अवस्था में इन्होंने आनरेरो मजिस्ट्रेटी स्वीकार को पार इसके अनंतर मध्यम पार उध्रेणी की परीक्षाओं को पास किया। राजा १ साहिए एक न्यायशील पार देशहितपी पुरुष हैं इसलिये प्रदूरदर्श लोगों की हष्टि में कुछ पटकने लगे। प्रस्तु, राजा साहिय ने इंगलैंड जाने की इच्छा प्रकट को, इस पर भी पुराने विचार के लोगों ने असमति प्रकट की परंनु पापको तो उस उन्नतिशाली देश की सामाजिक राजनैतिक मार व्यापारिक प्रयस्सा का मान प्राप्त करने को पुनसवार थी। इसलिये पाप ने रंगलेत की यात्रा को । पापको पतियता धर्मपत्नी भी पाप के साथ गरें । परंतु दो साल ईगलंड में रहने पर मापको धर्मपती का शरीरपात हो गया। तय मापने एक अंगरेजी रमखी संपियाह किया पार घर को लोट पाए । परंतु बाड़े हा दिन कालाकांफर में रह कर पाप पुनः ईगलंड का चले गए पार पहा जर्मन, कलेटिन पादि भाषामा पार गयिरा का अभ्यास करने लगे। पापने अपने देश को सेपा करने की इजा से सन् १८८३ में यहां पंगरंजी-हिंदी में हिंदापान" नाम का पत्र भी निकालाधार उसद्वारा रंगलेड- पासो लोगो पर देश की दशा का पास्तविक परिचय देने लगे, इससिपाय पाए यह को प्रत्येक सभा सोसायटी में जाते पार मनोहर मायान मापस देश-पासिपी उप मुख को कथा पनाने । उस समय हम पिपा रंगलंड में पिधायपन पाने जाने पडा सरिक न सका या पुकार करने । पने पहा पुलाने, समय समय पर भोज देत पार न पटन पाटन में पायाभ्य मासिहायता भी हर सन् १८८५ में पापा TRIL में ट्रिी में "iii.