पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/७३

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(१३) भारतेंदु यावू हरिश्चंद्र। BIRD प्रसिद्ध सेठ पमोरचंद के दोनों पुध राय रतनचन्द यहा- दुर पर शाह सतहबन्द काशी में घारसे थे। शाह फ़तहचंद के पात्र या हरपचंद ने अपने ही सद व्यवहार से असंख्य सम्पत्ति कमाई पर उसे कार्य में व्यय करके बड़ी बड़ाई भी पाई। नके पुत्र थायू गोपालचंद हुए जो हिंदी भाण के बड़े अच्छे कवि हो गए हैं। इन्हों पौराणिक माधार पर ४० फाग ग्रंथ रचे पर संस्कृत में भी एछ कविता को। इनके सुपुष बाबू दरिदचंद्र हुए। भारतेंदु घाव हरिश्चंद्र का जन्म तारीख ९ सितंबर सन् १८५० 10 में हुआ था । वायू साहेव का स्वभाय चंचल मार बुद्धि तीय थी। जिस समय केवल सात वर्ष की अवस्था थी तभी पापने एक दोहा रच कर पिता को समर्पित किया था। उस पर प्रसन्न हो कर पिता ने इनको माशीर्वाद दिया कि तू मवश्य मेरा मुख उन्यल करेगा । सो ऐसा हो हुमाभी। परंतु जिस समय इनकी अवस्था पर्प को थी इनके पिता का परलोकवास हो गया जिससे इनकी स्वतंत्र प्रकृति को पार भो स्वच्छंदवा प्राप्त हो गई और ये सब काम मन माने करने लगे। उसी समय इनकी पढ़ाई कासिलसिला शुरू हुआ । पहिले तो इन्होंने कुछ दिन राजा शिवप्रसाद से अँगरेजी पढ़ी, फिर कालेज में बैठाए गप । आप कालेज जाते अपना सबक भी याद कर ले जाते और अपनी विचित्र बुद्धि से पाठकों को भी संतुए रखते परंतु मन लगा कर न पढ़ते थे। तीन चार वर्ष तक तो इनके पढ़ने पढ़ाने का सिर ला ज्यों त्यों चलता