पृष्ठ:हिंदी कोविद रत्नमाला भाग 1.djvu/७५

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( ३९ ) बावू साहेब स्वयं जैसे बुद्धिमान् विद्वान् चतुर और बहुकला कुशल थे वैसेहो वे और और गुणो जनों का भी आदर किया करते थे। उनका उचित सम्मान करते तथा उन्हें उचित पारितोपिक भी देते थे। इसीसे इनके यहाँ सदैव अच्छे अच्छे पंडितों, कवियों और अन्य प्रकार के गुणो लोगों का जमाव रहता था। या । सन् १८७३ ही में आपने "तदीय समाज" नाम की एक सभा स्थापित को जिसका उद्देश्य केवल प्रेम और धर्म संबंधी विषयों पर विचार करना था। दिल्ली दरबार के समय इस समाज ने गोरक्षा के लिये एक लाख प्रजा के दस्तखत करवाए थे । इसी प्रकार इन्होंने कई एक सभा समाजें स्थापित की, पत्र निकाले, सहायता दे कर निकलवाए । पौर निज से पारितोषिक और इनाम दे दे कर कई एक को कवि और सुलेखक बना दिया। इन्होंने अधिकतर नाटक और कविता में ही सब ग्रंथ रचे, इनके रचित ग्रंथों में काव्यों में प्रेम फुलबारी, नाटकों में सत्य हरिश्चंद्र, चंद्रावली, धर्म संबंधी ग्रंथों में तदोयसर्वस्व और ऐतिहासिक रचना में काश्मीर कुसुम, चुने हुए ग्रंथ हैं । आप ऐतिहासिक विषय के बड़े प्रेमी थे पार पापकी रचना प्रायः सब ऐतिहासिक विपयों से संबंध रखती है। बाबू हरिदचंद्र जी को हिंदी चिर ऋणी रहेगी। यह इन्होंके उद्योग का फल है कि पाजदिन हिंदी का इतना प्रचार है। इसकी सहायता में इन्होंने अपनेको सब प्रकार के सुखों से वंचित कर दिया । हिंदी पाकाश मंडल में, जब कि घोर अंधकार छारहा था, भारतेंदु के उदय से यह प्रकाश फैला कि जिसकी कौमुदी से अत्र तक लोग मानंदित पर सुखी होते हैं। इन्हीं वातों का स्मरण कर समस्त हिंदी समाचारपत्रों ने भारतंदु को उपाधि से इन्हें