सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १०३ )

प्रथा है। परंतु आकाश से यदि समुद्र की तुलना की जाय तो समुद्र क्षुद्र प्रतीत होता है। महाकाय बृहस्पति और शनि की तुलना पृथ्वी से कीजिए तो पृथ्वी बिलकुल छोटी मालूम होगी और सूर्य से उन दो ग्रहों का साम्य किया जाय तो सूर्य के सामने वे बिलकुल छोटे दिखाई देंगे। संपूर्ण सूर्यमाला से यदि अपने नित्य के सूर्य की तुलना की जाय तो वह कुछ भी नहीं है। सिरियस नामक एक ग्रह इस सूर्य से भी हजारों गुना विशाल और लाखों कोस दूर है। यह सूर्यमाला आकाश के एक छोटे से प्रदेश में घूमती रहती है। इस सूर्यमाला के चारों ओर दूसरी ऐसी ही बड़ी वड़ो ग्रहमालाएँ भ्रमण कर रही हैं। नक्षत्रों में से कितने ही इतनी दूरी पर हैं कि प्रकाश की गति एक सेकंड में एक लाख अस्सी हजार मील होने पर भी उनका प्रकाश हमारी पृथ्वी तक पहुँचने के लिये बरसे का समय लगता है। इन नक्षत्रों के परे और भी न जाने कितने तारे हैं परंतु वे अत्यंत दूर हैं, इस कारण नजर नहीं आते। दूरबीन से देखने पर भी वे कुहरे की तरह धुंधले दिखाई पड़ते हैं। यद्यपि वैज्ञा- निकों ने विश्व की अनंतता में घुस कर बहुत कुछ चमत्कारों का पता लगाया है परंतु उसका पार नहीं पाया है।ये चम- त्कार चित्त को हरनेवाले और मनुष्य के आनंद-प्रवाह के नित्य बहनेवाले झरने हैं। इसलिये इन चमत्कारों के अनुभव से संसार के क्षुद्र दुःख और बाधाओं की परवा नहीं करनी चाहिए।

-गणपत जानकीराम दूबे
 


_______