पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/११९

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सता नहीं आई है पर आशा है कि उत्रित पथ के अवलंबन

द्वारा वह धीरे धीरे आ जायगी। खड़ी बोली में जो अधि- कांश कविताएँ और पुस्तके लिखी जाती हैं वे इस बात का ध्यान रखकर नहीं लिखो जाती कि कविता की भाषा और गद्य की भाषा में भेद होता है। कविता की शब्दावली कुछ विशेष ढंग की होती है। उसके वाक्यों का रूप-रंग कुछ निराला है। किसी साधारण गद्य को नाना छंदों में ढाल देने से ही उसे काव्य का रूप नहीं प्राप्त हो जायगा अतः कविता की जो सरस और मधुर शब्दावली ब्रजभाषा में चली आ रही है उसका बहुत कुछ अंश खड़ी बोली में रखना पड़ेगा। भाववैलक्षण्य के संबंध में जो बाते गद्य के प्रसंग में कही जा चुकी हैं वे कविता के विषय में ठीक घटती हैं। बिना भाव की कविता ही क्या ? खड़ी बोलो की कविता के प्रचार के साथ काव्यक्षेत्र में जो अनधिकार-प्रवेश की प्रवृत्ति अधिक हो रही है वह ठीक नहीं। कविता का अभ्यास प्रारंभ करने के पहले अपनी भाषा के बहुत से नए पुराने काव्यों की शैली, का मनन करना, रीति-ग्रंथों का देखना, रस, अलंकार आदि से परिचित होना आवश्यक है।

-श्यामसुंदरदास
 

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