पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( १२६ )

है। दुखी व्यक्ति जितना ही अधिक असहाय और असमर्थ होगा उतनी ही अधिक उसके प्रति हमारी करुणा होगो । एक अनाथ अाला को मार खाते देख हमें जितनी करुणा होगो उतनी एक सिपाही वा पहलवान को पिटते देख नहों। इससे स्पष्ट है कि परस्पर साहाय्य के जो व्यापक उद्देश्य हैं उनका धारण करनेवाला मनुष्य का छोटा सा अंतःकरण नहों, विश्वात्मा है।

दूसरों के विशेषतः अपने परिचितों के क्लेश वा करुणा पर जो वेगरहित दुःख होता है उसे सहानुभूति कहते हैं शिष्टाचार में अब इस शब्द का प्रयोग इतना अधिक होने लगा है कि यह निकम्मा सा हो गया है। अब प्रायः इस शब्द से हृदय का कोई सच्चा भाव नहीं समझा जाता है। सहानुभूति के तार, सहानुभूति की चिट्टियाँ लोग यों ही भेजा करते हैं। यह छद्म-शिष्टता मनुष्य के व्यवहारक्षेत्र में घुसकर सच्चाई को चरतो चलो जा रही है।

करुणा अपना बीज लक्ष्य में नहीं फेंकती अर्थात् जिस पर करुणा की जाती है वह बंदले में करुणा करनेवाले पर भी करुणा नहीं करता-जैसा कि क्रोध और प्रेम में होता है- बल्कि कृतज्ञता, श्रद्धा वा प्रोति करता है। बहुत सी औपन्या- सिक कथाओं में यह बात दिखलाई गई है कि युवतियाँ दुष्टों के हाथ से अपना उद्धार करनेवाखे युवकों के प्रेम में फंस गई हैं। उद्वेगशील बँगला उपन्यासलेखक करुणा और प्रोति के मेल से बड़े ही प्रभावोत्पादक दृश्य उपस्थित करते हैं।