पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१४४

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सैकड़ों अच्छे अच्छे कवि हो गए हैं। वहाँ भी शुरू शुरू में तुकबंदी का बिलकुल खयाल नहीं था। अँगरेजी में भी अनुप्रास-हीन बेतुकी कविता होती है। हाँ, एक बात जरूर है कि वजन और काफिए से कविता अधिक चित्ताकर्षक हो जाती है*[१]। पर कविता के लिये ये बातें ऐसी हैं जैसे कि शरीर के लिये वस्त्राभरण। यदि कविता का प्रधान धर्म मनोरंजकता और प्रभावोत्पादकता उसमें न हो तो इनका होना निष्फल समझना चाहिए। पद्य के लिये काफिए वगैरह की जरूरत है, कविता के लिये नहीं। कविता के लिये तो ये बातें एक प्रकार से उलटा हानिकारक हैं। तुले हुए शब्दों में कविता करने और तुक, अनुप्रास आदि ढूँढ़ने से कवियों के विचार-स्वातंत्र्य में बड़ी बाधा आती है। पद्य के नियम कवि के लिये एक प्रकार की बेड़ियाँ हैं। उनसे जकड़ जाने से कवियों को अपने स्वाभाविक उड्डान में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कवि का काम है कि वह अपने मनोभावों को स्वाधीनता पूर्वक प्रकट करें। पर काफिया और वजन उसकी स्वाधीनतामें विघ्न डालते हैं। वे उसे अपने भावों को स्वतंत्रता से नहीं प्रकट करने देते। काफिए और वजन को पहले ढूँढ़कर कवि को अपने मनोभाव तदनुकूल गढ़ने पड़ते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि प्रधान बात अप्रधानता को प्राप्त हो जाती है।


  1. *Oscar Wilde तुकबंदी को A Spiritual element of thought and passion कहता है।