पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/१६९

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पहले वह ओसाको नामक शहर के बड़े बड़े धनाढ्य और भद्र पुरुषों के पास गया और उनसे मदद माँगी। इन भलेमानसे ने वादा तो किया, पर उसे पूरा न किया। प्रोशियो फिर, उनके पास कभी न गया। उसने बादशाह के वजीरों को पत्र लिखे कि इन किसानों को मदद देनी चाहिए। परंतु बहुत दिन गुजर जाने पर भी जवाब न पाया। ओशियो ने अपने कपड़े और किताबें नीलाम कर दी। जो कुछ मिला, मुट्ठो भर- कर उन आदमियों की तरफ फेंक दिया। भला इससे क्या हो सकता था ? परंतु ओशियो का दिल इससे पूर्ण शिव रूप हो गया। यहाँ इतना जिक्र कर देना काफी होगा कि जापान के लोग अपने बादशाह को पिता की तरह पूजते हैं। उनके हृदय की यह एक वासना है ऐसी कौम के हजारों भादमी इस वीर के पास जमा हैं। ओशियो ने कहा-"सब लोग हाथ में बाँस लेकर तैयार हो जाओ और बगावत का झंडा खड़ा कर दो।" कोई भी चूँ वा चरा न कर सका। झंडा खड़ा हो गया। ओशियो एक बाँस पकड़कर सबके आगे किओटो जाकर बादशाह के किले पर हमला करने के लिये चला। इस फकीर जनरल की फौज की चाल को कौन रोक सकताथा जब शाही किले के सरदार ने देखा तब उसने रिपोर्ट की और आज्ञा माँगी कि ओशियो और उसकी बागी फौज पर बंदूकों की बाढ़ छोड़ी जाय ? हुक्म हुआ कि “नहीं, ओशियो तो कुदरत के सब्ज वों को पढ़नेवाला है। वह किसी खास बगावत का