इसी अर्से में वह राजा उस सपने के मंदिर में खड़ा खड़ा
क्या देखता है कि एक ज्योति सी उसके सामने आसमान से
उतरी चली आती है उसका प्रकाश तो हजारों सूर्य से भी
अधिक है परंतु जैसे सूर्य को बादल घेर लेता है उस प्रकार
उसने मुँह पर घूँघट सा डाल लिया है, नहीं तो राजा की,
आँखें कब उस पर ठहर सकती थीं; इस चूंघट पर भी वे मारे
चकाचौंध के झपकी चली जाती थीं। राजा उसे देखते ही
काँप उठा और लड़खड़ाती सी जबान से बोला कि हे महा-
राज ! आप कौन हैं और मेरे पास किस प्रयोजन से
आए उस पुरुष ने बादल की गरज के समान गंभीर उत्तर दिया कि
मैं सत्य हूँ, अंधों की आँखें खोलता हूँ, मैं उनके आगे से
धोखे की टट्टी हटाता हूँ, मैं मृगतृष्णा के भटके हुओं का भ्रम
मिटाता हूँ और सपने के भूले हुओं को नींद से जगाता हूँ।
हे भोज ! अगर कुछ हिम्मत रखता है तो आ हमारे साथ आ
और हमारे तेज के प्रभाव से मनुष्यों के मन के मंदिरों का भेद
ले, इस समय हम तेरे ही मन को जाँच रहे हैं। राजा के जी
पर एक अजब दहशत सी छा गई। नीची निगाह करके वह
गर्दन खुजाने लगा। सत्य बोला, भोज ! तू डरता है, तुझे
अपने मन का हाल जानने में भी भय लगता है ? भोज ने कहा-
नहीं, इस बात से तो नहीं डरता क्योंकि जिसने अपने तई
नहीं जाना उसने फिर क्या जाना ? सिवाय इसके मैं तो आप
चाहता हूँ कि कोई मेरे मन की थाह लेवे और अच्छी तरह
पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/३२
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