पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/३५

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उन पेड़ों में फल लगे हैं या तुझे फुसलाने और वश करने को किसी ने उनकी टहनियों से लटका दिए हैं ? चल, उन पेड़ों के पास चलकर देखें तो सही। मेरी समझ में तो लाल फल जिन्हें तू अपने दान के प्रभाव से लगे बतलाता है यश और कीर्ति फैलाने की चाह अर्थात् प्रशंसा पाने की इच्छा ने इल पेड़ में लगाए हैं।" निदान ज्योंही सत्य ने उस पेड़ के छूने को हाथ बढ़ाया राजा सपने में क्या देखता है कि वे सारे आस्मान से ओले गिरते हैं एक आन की आन में धरती पर गिर पड़े। धरती सारी लाल हो गई; पेड़ों पर सिवाय पत्तों के और कुछ न रहा । सत्य ने कहा कि "राजा जैसे कोई किसी चीज को मोम से चिपकाता है उसी तरह तूने अपने भुलाने को प्रशंसा की इच्छा से ये फल इस पेड़ पर लगा लिए थे सत्य के तेज से यह मोम गल गया, पेड़ ठूँठ का ठूँठ रह गया । जो तूने दिया और किया सब दुनिया के दिखलाने और मनुष्यों से प्रशंसा पाने के लिये, केवल ईश्वर की भक्ति और जीवों की दया से तो कुछ भी नहीं दिया । यदि कुछ दिया हो या किया हो तो तू ही क्यों नहीं बतलाता। मूर्ख, इसी के भरोसे पर तू फूला हुआ स्वर्ग में जाने को तैयार हुआ था।"

भोज ने एक ठंढी सॉस ली। उसने तो औरों को भूला समझा था पर वह सबसे अधिक भूला हुआ निकला। सत्य ने उस पेड़ की तरफ हाथ बढ़ाया जो सोने की तरह चमकते हुए पीले पीले फलों से लदा हुआ था। सत्य बोला. "राजा