लाई देते हैं; कैसे सुंदर और प्यारे मालूम होते हैं। पर तो
उनके पन्ने के हैं और गर्दन फीरोजे की, दुम में सारे किस्म के
जवाहिरात जड़ दिए हैं।" राजा के जी में धर्मड की चिड़िया
ने फिर फुरफुरी ली। मानों बुझते हुए दीये की तरह वह
जगमगा उठा। जल्दी से उसने जवाब दिया कि "हे सत्य,
यह जो कुछ तू मंदिर की मुंडेरों पर देखता है मेरे संध्यावंदन
का प्रभाव है मैंने जो रातों जाग जागकर और माथा रग-
ड़ते रगड़ते इस मंदिर की देहली को घिसकर ईश्वर की स्तुति
वंदना और विनती प्रार्थना की है वे ही अब चिड़ियों की तरह
पंख फैलाकर आकाश को जाती हैं, मानों ईश्वर के सामने
पहुँचकर अब मुझे स्वर्ग का राजा बनाती हैं ।" सत्य ने कहा
कि राजा, दीनबंधु करुणासागर श्रीजगन्नाथ जगदीश्वर अपने
भक्तों की बिनती सदा सुनता रहता है और जो मनुष्य शुद्ध-
और निष्कपट होकर नम्रता और श्रद्धा के साथ अपने
दुष्कमों का पश्चात्ताप अथवा उनके क्षमा होने का टुक भी निवे-
दन करता है वह उसका निवेदन उसी दम सूर्य चाँद को
बेधकर पार हो जाता है, फिर क्या कारण कि ये सब अब तक
मंदिर के अँडेरे पर बैठे रहे ? प्राचल, देखें तो सही हम
लोगों के पास जाने पर आकाश को उड़ जाते हैं या उसी
जगह पर परकटे कबूतरों की तरह फड़फड़ाया करते हैं।
भोज डरा लेकिन उसने सत्य का साथ न छोड़ा। जब वह
मुँडेरे पर पहुँचा तो क्या देखता है कि वे सारे जानवर जो दूर