पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/५१

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मारने आ रहा है और वह चट क्रोध से व्याकुल होकर बिना

की शक्ति का विचार वा भय किए उसे मारने के लिये अकेला दौड़े तो उसके मारे जाने में बहुत कम संदेह है अतः कारण के यथार्थ निश्चय के उपरांत आवश्यक मात्रा में. और उपयुक्त स्थिति में भी क्रोध वह काम दे सकता है जिसके लिये उसका विकास होता है।

कभी कभी लोग अपने कुटुंबियों वा स्नेहियों से झगड़कर उन्हें पीछे से दुःख पहुँचाने के लिये अपना सिर तक पटक देते यह सिर पटकना अपने को दुःख पहुँचाने के अभिप्राय से नहीं होता क्योंकि बिलकुल बेगानों के साथ कोई ऐसा नहीं करता। जब किसी को क्रोध में सिर पटकते देखे तब समझ लेना चाहिए कि उसका क्रोध ऐसे व्यक्ति के ऊपर है जिसे उसके सिर पटकने की परवा है अर्थात् जिसे उसके सिर फूटने से यदि उस समय नहीं तो आगे चलकर दुःख पहुँचेगा।

क्रोध का वेग इतना प्रबल होता है कि कभी कभी मनुष्य यह विचार नहीं करता कि जिसने दुःख पहुँचाया है उसमें दुःख पहुँचाने की इच्छा थी या नहीं। इसी से कभी तो वह पैर कुचल जाने पर किसी को मार बैठता है और कभी ठोकर खाकर कंकड़ पत्थर तोड़ने लगता है। चाणक्य ब्राह्मण अपना विवाह करने जाता था । मार्ग में कुश उसके पैर में चुभे। वह चट मट्ठा और कुदाली लेकर पहुंचा और कुशों को उखाड़ उखाडकर उनकी जड़ों में मट्ठा देने लगा। अचानक