पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/७१

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संपत्ति-विपत्ति का ठौर ठौर पर स्मरण दिलाता था। मार्ग के दोनों ओर सघन वनवृक्ष प्रहरीरूप में खड़े थे; उन पर विहग-वृंद का कलरव एक अपूर्व आनंद का संचार कर रहा था। पाठक-वृंद, कदाचित् आपको नगरवासी होने से वन- वर्णन ऊभट प्रतीत होता होगा और आप मुख्य स्थान का वृत्तांत सुनने के लिये अधिक उत्सुक होंगे, अतः हम मार्ग का कुछ भी वृत्तांत न कह मुख्य स्थान पर पहुँचते हैं । भारतवर्षीय इतिहास में जब से यवनगण के संकटमय चरणों के इस देश में पड़ने का वर्णन पाया जाता है तब से इस देश के दो प्रांतों के राज- पूत वीरों को हम विशेषतः रणक्षेत्र में पाते हैं। एक तो राज- पूताने के, दूसरे बुंदेलखंड के। आज का हमारा आलोच्य विषय बुंदेलखंड का एक नगर है। इसलिये राजपूताने का वर्णन न कर हम कुछ संक्षेप सा वर्णन बुंदेले राजपूतों के वंश का कर देना उचित समझते हैं।

विंध्याचल की नाना शाखाएँ इस देश के भीतर प्रविष्ट हैं अतः यह पार्वतीय देश उसी संबंध से विध्यखंड, विंध्यशैलखंड अथवा विध्येलखंड कहलाया और कालांतर में इस शब्द का अपभ्रंश हो देश बुंदेलखंड कहलाने लगा ।


  • किसी किसी का यह पौराणिक मत है कि इस वंश के

मूल पुरुष राजा वीर ने उग्र तप कर श्री विध्यवासिनी को अपना सिर चढ़ाया था ।भगवती उनसे ऐसी प्रसन्न हुई कि उन्होंने उन्हें पुनः जीवित कर दिया। इतना ही नहीं, देवी की कृपा से सिर चढ़ाने में जो रक्त-विदु गिरे थे उनसे अनेक वीर पुरुष उत्पन्न हुए जो राजा के सहायक हुए। बूंदों से उत्पन्न होने से वे बुंदेले कहलाए।