पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/७३

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शृंखलाबद्ध राज्य नष्टप्राय हो गाँव गाँव के निराले ठाकुर होते जाते थे, उसी समय शाकंभरी-नरेश पृथ्वीराज को हल से मारनेहारे क्रूर शहाबुद्दीन गोरी के सेनानायक, पृथ्वीराज के अधिकृत देशों में फैल गए। जिस लरक्क खत्री ने आर्यवंश की अहित-चिता कर कई बार शहाबुद्दीन को पृथ्वीराज के बंधन से और अंत में पृथ्वीराज की वैसी ही दशा में सहायता न कर, शहाबुद्दीन के हाथ उसका शिरच्छेद होने दिया, और इस प्रकार स्वजातिघात का पाप अपने सिर पर लिया उसी की संतान, यवन-शासन होते ही, महोबे की ओर भाई और राज्य की सीमा पर जालौन प्रांत के कांच परगने के मुद्दानी ग्राम में अपने राज्य की राजधानी नियत कर रहने लगी।

धन्य भारत ! तेरा जलवायु अद्भुत है, कोई कैसा ही क्रूर कुटिल प्रकृतिवाला तेरी गोद में क्यों न आवे, जहाँ पतित- पावनी भगवती जमुनंदिनी के जलबिदुओं का उसने प्राचमन किया और जहाँ त्रैले क्य-विभूति को तृण गिनने और ब्रह्मानंदा- मृत का पान करनेहार हिमशृगाश्रित ऋषियों के पादस्पर्शपूत- वायु उसके अंगों में लगी, तहाँ उसके मनोविकार, जन्म- क्षणमात्र में आ ही गया। "खल सुधरहि सतसंगति पाई-पारस परस कुधातु सुहाई” का न्याय होता ही है।

लोरक्क की संतानों की भी यही दशा हुई। भारतवर्ष के जलवायु ने उन्हें यहाँ के पवित्र गुणों से अलंकृत कर दिया;