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पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/७७

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कायरों की भाँति रण से भाग गया। ओड़छे का चतुर्भुजजी का विशाल मंदिर इन्हीं महाराज का कीर्तिस्तंभ है। यह स्वर्णकलशमय मंदिर तीन शिखरों में है। एक तो पर्वत के समान ऊँची बैठक पर यह मंदिर बनवाया गया है, दूसरे मंदिर की उँचाई भी एक पहाड़ के समान ही है। इसका विस्तृत सभामंडप वृदावन के गोविददेवजी के मंदिर से किसी अंश में न्यून नहीं है। सभामंडप में वायु तथा उजाले के लिये द्वार कटे हैं और एक छोर पर चतुर्भुजजी की मूर्ति स्थापित है। सभामंडप के किसी द्वार पर खड़े हो जाइए, नगर के उस ओर का सारा भाग हथेली पर की वस्तु की भाँति दृष्टि- गोचर होगा। छत पर से तो समस्त नगर ही दिखाई पड़ता है। यह मंदिर एक छोटे किले के समान है और ऐसा दृढ़ है कि कदाचित् तोपों की मार भी वह सरलता से सहन कर सके। भूलभुलैयों की भाँति इसकी छत पर द्वार कटे हैं। अपने ढंग का यह मंदिर ऐसा अनूठा है कि कदाचित् बुंदेलखंड में कोई ऐसा दूसरा मंदिर न निकले । परंतु कुछ कारणों से यह मंदिर अपूर्ण सा रहा और महाराज स्वर्गयात्रा कर गए। राजसिहासन पर यशस्वी महाराज मधुकर साह आसीन हुए। मुगलवंश का भाग्य इस समय पूर्णिमा के चंद्रमा के समान चम- चमा रहा था। शुद्ध स्वार्थी लोभी जन दिल्लीश्वर की तुलना "दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरो वा" कहकर परमेश्वर से करने लगे थे और अपनी कुटिल नीति से अकबर भारतवर्ष के हिंदू राजा