पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/९

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एक गठरी अपने लबादे के भीतर बड़ी सावधानी से छिपाए हुए आया है। जब उसे फेंकने लगा तब मैंने देखा कि अपने दारिद्रव को फेंक रहा है। एक दूसरे को देखा कि बड़े पाश्चात्ताप के साथ अपनी गठरी फेंककर चलता हुआ। मैंने उसके जाने पर उसकी गठरी खोलकर देखी तो मालूम हुआ कि दुष्ट अपनी अर्धांगिनी को फेंक गया है जिससे उसको सुख की अपेक्षा अति दुःख प्राप्त होता था। इसके अनंतर दिखाई दिया कि बहुतेरे प्रेमीजन अपनी अपनी गुप्त गठरी लिए आ रहे हैं।

पर सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि यद्यपि ये लोग अपनी अपनी गठरियाँ फेंकने के हेतु लाए थे, और उनके दीर्घ निःश्वास से जान पड़ता था कि उनका हृदय इस बोझ के नीचे दबकर चूर चूर हुआ जाता है, पर उस ढेर के निकट पहुँचने पर उनसे फेंकते नहीं बनता।

ये लोग कुछ काल तक खड़े न जाने क्या सोचते रहे। उनकी चेष्टा से अब ऐसा जान पड़ने लगा कि उनके चित्त में मानों बड़ा संकल्प विकल्प हो रहा है। फिर शीघ्र ही उनका मुख प्रफुल्ल दिखाई पड़ने लगा और वे अपनी अपनी गठरी ज्यों की त्यों लिए वहाँ से चलते दिखाई दिए। मैं समझ गया। इन लोगों ने तर्क वितर्क के पश्चात् यही निश्चय किया कि अपनी अपनी बला अपने पास ही रखना भलमनसाहत है इसी से ये सब अपनी गठरियाँ अपने घर लिए जा रहे हैं। मैंने