पृष्ठ:हिंदी निबंधमाला भाग 1.djvu/९४

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बहलाव है ? मित्रों का प्रेमालाप कभी इसकी सोलहवीं कला तक भी न पहुँच सका। इसी सैर का नाम ध्यान या मनोयोग या चित्त को एकाग्र करना है जिसका साधन एक दो दिन का काम नहीं, सालहासाल के अभ्यास के उपरांत यदि हम थोड़ा भी अपनी मनोवृत्ति स्थिर कर अवाक हो अपने मन के साथ बातचीत कर सकें तो मानों अति भाग्य । एक वाकशक्ति मात्र के दमन से न जानिए कितने प्रकार का दमन हो गया । हमारी जिह्वा जो कतरनी के समान सदा स्वच्छंद चला करती है उसे यदि हमने दबाकर काबू में कर लिया तो क्रोधादिक बड़े बड़े अजेय शत्रुओं को बिना प्रयास जीत अपने वश कर डाला। इसलिये अवाक रह अपने आप बातचीत करने का यह साधन यावत् साधनों का मूल है, शांति का परमपूज्य मंदिर है, परमार्थ का एकमात्र सोपान है ।

-बालकृष्ण भट्ट
 

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