पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१४०

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हिंदी भाषा वज- पुरुष संस्कृत | प्राक्त अपनश | अवधी । खड़ी बोलो. एक्वचन उ० पु. | चलामि | चलामि | चल चला | चलो म० पु. | चलसि | चलसि | चलहि | चलै चले चलता हूँ चलता है श्र० पु० चलति चलह | चलहि, चले चले । चलता है बहुवचन उ० पु. | चलामः| चलमो । चलहुँ, चले चलै । चलते हैं म० पु. चलय | चलह | चलहुँ चलति | चलति | चलहि चलै चला चलते हैं चलते हैं अ० पु० इन उदाहरणों में वर्तमान काल के 'चलता', 'चलती' श्रादि क्रियांश वर्तमानकालिक धातुज विशेषण हैं। सं० चलन् (चलंत) चलंती श्रादि से इनकी उत्पत्ति हुई है। इनको देखने से स्पष्ट प्रतीत होता है कि पहले 'है' का भाव क्रियाओं में ही सम्मिलित था, पर पीछे से खड़ी बोली में ये क्रियाएँ कृदंत रूप में आ गई और भिन्न भिन्न पुरुषों, पचनों, फालों, प्रयोगों श्रादि का रूप सूचित करने के लिये 'है' के रूप साथ में लगाए जाने लगे। यही व्यवस्था भविष्यत् काल की भी है। हाँ, उसमें भेद यह है कि ब्रजभाषा में उसके दोनों रूप मिलते हैं, पर अवधी तथा खड़ी बोली में एक ही रूप मिलता है। यह बात भी नीचे दिए हुए कोष्ठक से स्पष्ट हो जाती है।