पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/१८

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प्राचीन भाषाएँ कम से कम मागधी की तो नहीं ही हुई। यह एक बहुत ही हीन भाषा मानी जाती थी, जैसा नाटकों में नीच पात्रों के लिये इसके प्रयोग का निर्देश घतलाता है। अर्ध-मागधी और मागधी के प्रदेशों में भी शौर- सेनी ही साहित्य के लिये उपयुक्त समझी जाती थी। श्रपदंश काल के पूरव के कविजन भी अपनी प्रांतीय विभाषा का प्रयोग न कर शौरसेनी अपभ्रंश ही का प्रयोग करते थे। यह परंपरा बहुत दिनों तक चली। दसवीं से तेरहवीं शताब्दी तक की पुरानी बँगला कविताओं में भी इसी शौरसेनी अपभ्रंश का प्रयोग होता रहा। मिथिला के विद्यापति (१४५० वि०) ने मैथिली के साथ साथ 'अवहट" या "अपभ्रष्ट" में भी कविता की। यह 'श्रवहट्ट' शौरसेनी अपभ्रंश का ही अर्वाचीन रूप था। इधर ब्रज-मापा को भी उसी अपभ्रंश की विरासत मिली थी, जिसे अब खड़ी बोलीवाले छीनना चाहते हैं। इस प्रकार यह अपभ्रंश उस समय के समस्त श्रायों की राष्ट्र-भापा थी. जो गुजरात और पश्चिमी पंजाब से लेकर बंगाल तक प्रचलित थी। डाक्टर कीथ ने अभी थोड़े दिन हुए "संस्कृत साहित्य का इति- हास" लिखा है। उसके पहले संड में उन्होंने भापात्रों का विवेचन किया है। अपभ्रंश के विषय में उनकी सम्मति हमारे निष्कर्ष के प्रति- कूल है। अतएव उस संबंध में यहाँ थोड़ा सा विचार कर लेना अमा- संगिक न होगा। उन्होंने दंडी और रुद्रट का श्राथय लेकर यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि अपभ्रंश कभी किसी रूप में देश-भापा न थी। वह आभीर, गुर्जर आदि विदेशी आक्रमण-कारियों की भाषा थी और उन्हीं के साथ साथ उसका प्रसार और उसकी प्रतिष्ठा हुई, श्रतएव उसे मध्यकालीन प्रारतों और प्राधुनिक आर्य-भापात्रों की विचली कड़ी मानना ठीक नहीं है। इस मत के प्रवर्तक पिशल और ग्रियर्सन दोनों ने भ्रम फैलाया है, इत्यादि। हमें यहाँ पिशल और ग्रियर्सन का पक्ष लेकर उनके मत का समर्थन नहीं करना है, हमें तो केवल यह कहना है कि अपभ्रंश देश-भापा क्या एक प्रकार.से राष्ट्र-भाषा थी और उसका प्रचार समस्त उत्तरापथ में था। डाक्टर कीथ ने जिनके श्राधार पर अपना मत स्थिर करने का प्रयत्न किया है उनका आशय ही कुछ और है, जो डाक्टर कीथ के अनुकूल नहीं कहा जा सकता। दंडी ने अपने काव्यादर्श में लिखा है कि काव्यों (दृश्य और श्रव्य दोनों) में भाभीर आदि की बोली को तथा शास्त्री (व्याकरण आदि ) में संस्कृत-भिन्न भापामात्र को अपभ्रंश कहते हैं। केवल इस उल्लेख के आधार पर यह सिद्धांत नहीं निकाला जा सकता कि अपभ्रंश भाभीर प्रादि विदेशियों