पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्राचीन भाषाएँ तात्पर्य केवल इतना ही है कि कीथ ने जिन आधारों पर अपने नए मत का निश्चय किया है वे ठीक नहीं हैं, अतएव वे सिद्धांत भी भ्रमात्मक हैं। । आगे चलकर प्राकृत की भांति अपभ्रंश भी व्याकरण के नियमों से जकड़ दी गई और केवल साहित्य में व्यवहत होने लगी। पर उसका पति स्वाभाविक प्रवाह चलता रहा। क्रमशः वह भापा " एक ऐसे रूप को पहुँची जो कुछ अंशों में तो हमारी आधुनिक भापानी से मिलता है और कुछ अंशों में अपभ्रंश से। आधु- निक हिंदी भापा और शौरसेनी अपभ्रंश के मध्य की अवस्था कभी कभी 'अवहट्ट' कही गई है। 'प्राकतगल' में उदाहरण रूप से सन्निविष्ट कवि. ताएँ इसी अवहट्ट भाषा में है। इसी अवहट्ट को पिंगल भी कहते हैं और राजपूताने के भाट अपनी डिंगल के अतिरिक्त इस पिंगल में भी कविता करते रहे हैं। कुछ विद्वानों ने इसे 'पुरानी हिंदी' नाम भी दिया है। यद्यपि इसका ठीक ठीक निर्णय करना कठिन है कि अपभ्रंश का कब अंत होता है और पुरानी हिंदी का कहाँ से आरंभ होता है, तथापि वारहवीं शताब्दी का मध्य भाग अपभ्रंश के अस्त और आधुनिक भापात्रों के उदय का काल यथाकथंचित् माना जा सकता है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले मूल भाषा से वैदिक संस्कृत की उत्पत्ति हुई और फिर उसने कट-छुट या सुधरकर साहि- त्यिक रूप धारण किया; पर साथ ही वह वोल-चाल की भाषा भी बनी रही। प्राचीन काल की बोल-चाल की भाषा को कुछ विद्वानों ने पहली प्राकृत' नाम दिया है। हमने उसका उल्लेख मूल भाषा के नाम से किया है। आगे चलकर यह पहली प्राकृत या मूल भाषा दूसरी प्राकृत के रूप में परिवर्तित हुई, जिसकी तीन अवस्थाओं का हम ऊपर उल्लेख कर चुके हैं। इन्हीं तीन अवस्थाओं का हमने पहली प्राकत या पाली, दूसरी प्राकृत या शौरसेनी श्रादि प्राकृते, और अपभ्रंश नामों से उल्लेख किया है। जब इन भिन्न भिन्न अवस्थाओं की प्राकृत भी वैयाकरणे के अधिकार में श्राकर साहित्यिक रूप धारण करने लगी, तब अंत में इस मध्य प्राकत से तीसरी प्राकृत या अपभ्रंश का उदय हुआ। जय इसमें भी साहित्य की रचना प्रारंभ हुई, तय बोल-चाल की भाषा से श्राधुनिक देश-भापात्रों का प्रारंभ हुआ। ये अाधुनिक देश-भापाएँ भी श्रय क्रमशः साहित्य का रूप धारण करती जाती हैं। इस इतिहास का यहां तक विवेचन करके यह कहना पड़ता है कि वोल-चाल की भाषा तथा साहित्य की भाषा में जब विशेष अंतर होने लगता है, तब वे भिन्न भिन्न मार्गों पर लग जाती हैं और उनका पृथक् पृथक विकास होने लगता है।