पृष्ठ:हिंदी भाषा.djvu/७५

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साहित्यिक हिंदी की उपभाषाएँ इससे यह स्पष्ट है कि अवधी में भूतकालिक सकर्मक क्रियाओं के कर्ता के साथ 'ने' का प्रयोग सर्वथा नहीं होता, पर ब्रजभाषा और सड़ी बोली में यह अवश्य होता है। इसी प्रकार कर्म, संप्रदान तथा अधि- करण के रूप खड़ी बोली के रूपों से मिलते हैं, पर अवधी से नहीं मिलते। जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, यह, वह, सो, को (कौन) और जो सर्वनामों के रूप कारक-चिह्नों के लगने के पूर्व ब्रजभाषा में था, वा, ता, का और जा हो जाते हैं, जैसे-याने, वाको, तासों, काकों, जाकों। पर अवधो में इनके रूप यहि, वहि, तेहि, केहि, जेहि होकर तय उनमें कारक-चिह्न लगते हैं। नीचे व्रजभापा के व्याकरण की मुख्य मुख्य यातें दे दी जाती हैं जिनसे इस भापा के स्वरूप का स्पष्ट ज्ञान हो जायगा। संज्ञा पुल्लिंग स्त्रीलिंग कारक आकारात प्रकारात ईकारात एकवचन घोड़ा घोड़ी कर्ता घोड़ा, घोड़े ने . घोड़े विकारी बहुवचन घोड़े घोड़ी, घोड़ी ने घोड़ी घोड़िया घोड़ियों, घोड़ियन ने, घोडियान ने घोड़ियन, घोड़ियान कर्ता घोड़े, घोड़न ने विकारी घोड़न, घोड़ान घरन फर्ता-ने कर्म, संमदान-को विभक्ति करण, अपादान--सों, ते अधिकरण-मे, मो, पै संबंध-को