(११५)
संगत है। मिश्र बन्धुओं का विवरण यह है[१]
दशवीं शताब्दी में भुआल कवि ने भगवद् गीता का अनुवाद पद्य-बद्ध हिन्दी भाषा में किया। यह ग्रन्थ उपलब्ध है।
ग्यारहवीं शताब्दी में कालिंजर के राजा नन्द ने कुछ कवितायें की हैं, किन्तु पुस्तक अब अप्राप्य है।
बारहवीं शताब्दी में जैन श्वेताम्बराचार्य जिन वल्लभ सूरी ने "वृद्ध नवकार" नामक ग्रन्थ बनाया जो जैन हिन्दी साहित्य में सबसे प्राचीन माना जाता है। इसी शताब्दी में महाराष्ट्र में चालुक्य वंशी सोमेश्वर नामक राजा, मसऊद कुतुब अली, साँईदान चारण और अकरम फ़ैज़ ने भी रचनायें कीं। इनमें से सोमेश्वर, मसऊद और कुतुब अली के ग्रन्थ नहीं मिलते। शेष लोगों में से साँईदानचारण ने "सामन्तसार" नामक ग्रन्थ की रचना की। और अकरम फ़ैज़ ने "वर्त्तमाल" नामक ग्रन्थ बनाया। एवं संस्कृत के वृत्तरत्नाकर नामक ग्रन्थ का अनुवाद किया॥
डाक्टर जी॰ ए॰ ग्रियर्सन ने भी इस काल के कुछ कवियों के नाम लिखे हैं[२]। वे हैं केदार, कुमारपाल और अनन्यदास। (१) केदार कवि का समय सन् ११५० ई॰ के लगभग है। डाक्टर साहब ने इसके किसी ग्रन्थ का नाम नहीं लिखा किन्तु कहा जाता है कि इसने "जयचन्द-प्रकाश" नामक महाकाव्य की रचना की थी, जो अब नहीं मिलता। (२) कुमारपाल बारहवें शतक में हुआ इसने "कुमारपाल चरित्र" की रचना की, जो उपलब्ध है। (३) अनन्यदास बारहवीं शताब्दी में हुआ, इसका "अनन्य-जोग" नामक ग्रन्थ प्राप्य है।
पं॰ रामचन्द्र शुक्ल ने अपने "हिन्दी साहित्य का इतिहास" नामक ग्रंथ में एक नवीन कवि मधुकर का भी नाम बतलाया है जो बारहवीं शताब्दी में था। वे कहते हैं इसने "जय मयंक जस चन्द्रिका" नामक ग्रन्थ की रचना की किन्तु वह ग्रन्थ प्राप्य नहीं है।