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नहीं है, और न यह किसी एक समूह की सम्बन्धित भाषाओं की विशेषता है। वरन् यह एक देश की भाषा विशेष की विशेषता है, अर्थात् कुल वर्त्तमान पिशाच भाषाओं और निकटके बलनिस्तान भर में इसका प्रचार है । तिब्बती वर्मन भाषा बालतो में कुछ ऐसे परिवर्तन होते हैं, जो कि पूर्वी तिब्बती वर्मन भाषाओं में (जैसे पुरिक और लद्दाखी) में नहीं दिखाई देते । तिब्बती वर्मन भाषा बालती और वर्तमान आर्य भाषा पैशाचो की अर्थात दोनों की यह विशेषता एक ही उद्गम से आई है, और इस देश में वही इनका पूर्वज है। खास बुरुशस्की में परिवर्तन के इस तरह के उदाहरणों का मिलना असंभव है, क्योंकि उसके आम पास कोई ऐसी भाषा नहीं है, जिस से उस की तुलना की जा सके । यह अकेली है, और जाने हुये इसके एक भी सम्बन्धी नहीं हैं।
कहा जाता है पैशाची भाषा में गुणाय नामक एक विद्वानने 'बड्डकथा' अर्थात 'वृहत्कथा' नामक एक ग्रन्थ लिखा था. यह ग्रन्थ अब नहीं प्राप्त होता । इसका संस्कृत अनुवाद पाया जाता है, जो काश्मीर के दो विद्वानों का किया हुआ है ; इनका नाम क्षेमेन्द्र और सोमदेव था। इस संस्कृत ग्रन्थ का नाम 'कथासरित्सागा' है। 'वडकथा, पैशाची भाषा के साहित्य का प्रधान ग्रन्थ है । इसके अतिरिक्त काश्मोरी भाषामें कुछ और ग्रन्थ हैं, परन्तु उनमें कोई विशेष प्रसिद्ध नहीं है।
काश्मीरी भाषा की प्रथम कवि एक स्त्री है, जिसका नाम लल्ला अथवा लालदेव था, वह चौदहवी इम्बी शताब्दी में हुई है । मुसल्मान कवियों में महमूद गाभी प्रसिद्ध है, यह अठारहवें शतक में था, इसने 'यूसुफ़जुलंग्या' 'लैलामजनू' और 'गोरफरहाद' नाम की पुस्तक फारसी ग्रन्थों के आधार से लिखी हैं ।
हेमचन्द्र ने दो प्रकार की पैशाची का वर्णन अपने प्राकृत व्याकरण में किया है पहली को केवल पैशाची और दूसरी को चूलिकापैशाची लिखा है। पैशाची का वर्णन पाद ४ के ३०३ से ३२४ तक के सूत्रों में और 'चूलिका पैशाची का निरूपण ३२५ से ३२८ तक के सूत्रों में किया गया