पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१०

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बन पड़ा लिख ही दिया है। इसके लिखने में भी हमें अपनी परिस्थिति के कारण अत्यंत कष्ट उठाना पड़ा है। हम आशा करते हैं कि हमारे गुणग्राहक विद्वान् हमारी अल्पज्ञता और परिस्थिति को समझकर तथा भगवान् श्रीकृष्णचंद्र की इस उक्ति को स्मरण करके कि "सर्वारंभा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः" दोषों पर दृष्टि न देंगे और हमे क्षमा करेंगे। 'विषय विवेचन' प्रकरण में जो आचार्यों के काल लिखे गए हैं, वे प्रायः म॰म॰ श्रीदुर्गाप्रसादजी द्विवेदी की साहित्यदर्पण की भूमिका से और श्रीसुशीलकुमार दे, एम॰ ए॰ के 'संस्कृत पोय्‌टिक्स' से लिए गए हैं, एतदर्थ उन्हें धन्यवाद है।

 

अड़चनें

अनुवाद करने में हमें अनेक अड़चनें भी उपस्थित हुईं। सबसे बड़ी अड़चन तो यह थी कि इस ग्रंथ पर कोई विवेचना-पूर्ण और विशद व्याख्या नहीं है, केवल नागेश भट्ट की गुरुमर्म-प्रकाश नामक टिप्पणी है, जिसमें उसके नामानुसार मोटे मोटे मर्म्मों पर प्रकाश डाला गया है, अतः अधिकांश स्थलों की विवेचना का भार इस अल्पज्ञ की तुच्छ बुद्धि पर ही आ पड़ा। दूसरी अड़चन यह थी कि यह ग्रंथ अब तक दो स्थानों से प्रकाशित हुआ है। एक काशी से और दूसरा 'काव्यमाला' में बंबई से। पर, न जाने क्यों दोनों ही संस्करण स्थान स्थान पर अशुद्ध हैं। काशीवाला संस्करण तो मुद्रणोपयोगी