पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२००

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का हास, भयानक का भय और वीभत्स का जुगुप्सा स्थायी भाव होता है।

रसों और स्थायी भावों का भेद

अच्छा, अब, रसों से स्थायी भावों मे क्या भेद है, सोभी समझ लीजिए। पहले और दूसरे मतों में-जिस तरह घड़े आदि का घड़े आदि के अंदर आए हुए आकाश से भेद है, उस तरह, तीसरे मत में-जिस तरह सच्ची चाँदी से मनःकल्पित चाँदी मे भेद है, उस तरहः और चौथे मत में-जिस तरह विषय (ज्ञानगम्य पदार्थ) का ज्ञान से भेद है, उस तरह स्थायी भावो का रसों से भेद समझना चाहिए।

ये स्थायी क्यों कहलाते हैं?

ये रति आदि भाव किसी भी काव्यादिक मे उसकी समाप्ति पर्यंत स्थिर रहते हैं, अतः इनको स्थायी भाव कहते हैं। आप कहेंगे कि ये तो चित्तवृत्तिरूप हैं, अतएव तत्काल नष्ट हो जानेवाले पदार्थ हैं, इस कारण इनका स्थिर होना दुर्लभ है, फिर इन्हे स्थायी कैसे कहा जा सकता है? और यदि वासनारूप से इनको स्थिर माना जाय तो व्यभिचारी भाव भी हमारे अंत:करण मे वासनारूप से विद्यमान रहते हैं, अतः वे भी स्थायी भाव हो जायँगे। इसका उत्तर यह है कि यहाँ इन वासनारूप भावों का वार-वार अभिव्यक्त होना ही स्थिर-पद का अर्थ है। व्यभिचारी भावों मे यह बात नहीं होती, क्योंकि उनकी