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पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२५

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  अर्थात् अप्पय दीक्षित के दुराग्रह से जिनकी बुद्धि मूर्च्छित हो गई है, उन गुरुद्रोहियों के गर्वों को यह मैं शांतकर रहा हूँ।

तीसरा श्लोक बाल कवि का बनाया हुआ बताया जाता है, जिनको अप्पय दीक्षित के भ्राता के पौत्र नीलकंठ ने 'नल-चरित' नामक ग्रंथ में अप्पय दीक्षित के समकालिक माना है। उन्होंने लिखा है कि—

यष्टुं विश्वजिता यता परिघरं सर्वे बुधा निर्जिता
भट्टोजिप्रमुखाः, स पंडित जगन्नाथोऽपि निस्तारितः।
पूर्वेऽर्धे, चरमें, द्विसप्ततितमस्याऽब्दस्य सद्विश्वजि—
द्याजी यश्च चिदम्बरे स्वमभजज्ज्योतिः सतां पश्यताम्॥

अर्थात् अप्पय दीक्षित ने अपनी आयु के ७२वें वर्ष के पूर्वार्ध में, विश्वजित् यज्ञ करने के लिये, पृथ्वी के चारों तरफ घूमते हुए भट्टोजि दीक्षित आदि सब विद्वानों को विजय किया और उस—सुप्रसिद्ध—पंडित जगन्नाथ का भी उद्धार कर दिया। फिर उसी वर्ष के उत्तरार्ध में विश्वजित् यज्ञ किया और चिदंबर क्षेत्र में सब सज्जनों के देखते हुए आत्मज्योति को प्राप्त हो गए।

अब यहाँ विचार करने की बात यह है कि अप्पय दीक्षित पंडितराज के समकालिक हो सकते हैं, अथवा नही। हमारी समझ से समकालिक हो सकते हैं। कारण यह