पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/६४

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इत्यादि कवि लोगों का कथन है। तात्पर्य यह कि काव्य का, प्रतिभा उत्पादक, व्युत्पत्ति सौंदर्याधायक अर्थात् पोषक और अभ्यासवर्धक कारण है।

इसी बात को पीयूषवर्ष ने दृष्टांत देकर स्पष्ट कर दिया है। वे कहते हैं—

प्रतिभैव श्रुताभ्याससहिता कवितां प्रति।
हेतुर्मृदम्जुसंबद्धबीजोत्पत्तिर्लतामिव॥

अर्थात् व्युत्पत्ति और अभ्यास सहित प्रतिभा कविता का कारण है; जिस तरह कि मिट्टी और जल से युक्त बीज की उत्पत्ति लता का। इसका तात्पर्य यह है कि जिस तरह लता का बीज उत्पादक, मिट्टी पोषक और जल वर्धक कारण है, उसी तरह प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य के कारण हैं।

पंडितराज का कथन यह है कि कविता का साक्षात् कारण एकमात्र प्रतिभा है, व्युत्पत्ति और अभ्यास उसके साक्षात् कारण नही, किंतु परंपरा से हैं। अर्थात् व्युत्पत्ति और अभ्यास काव्य के पोषक और वर्धक नहीं, किंतु प्रतिभा के पोषक और वर्धक हैं और उसको पुष्ट तथा विवर्धित करके काव्य को उपकृत करते हैं।

प्रतिभा क्या वस्तु है?

अच्छा, अब इन सब विचारों पर एक आलोचनात्मक दृष्टि डालिए। सबसे पहले यह सोचिए कि प्रतिभा है