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हमारे जैसा अल्पज्ञ और व्यग्रचित्त प्राणी इस कार्य में कृतकृत्य होने की आशा करें, यह यद्यपि दुस्साहस-मात्र ही है तथापि यह समझ -कर कि संस्कृत-भाषा के महा विद्वान् तो इस काम को हाथ में लेंगे नही; क्योंकि वे बहुधा हिंदी में लेख लिखने में अपना अपमान मानते हैं, हमने अपनी अयोग्यता समझते हुए भी यह कुचेष्टा कर ही डाली। हाँ, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमने अपने पूर्वोक्त सिद्धांत के अनुसार, जहाँ तक हो सका, अनुवाद के सरल और बामुहाविरे बनाने के प्रयत्न में किसी प्रकार की कमी नहीं की; और नव्य न्याय की शैली से लिखे हुए इस ग्रंथ के अनुवाद में भी, बिना किसी विशेष कारण के, कही अवच्छेदक तथा अवच्छिन्न शब्द नहीं आने दिया और उन स्थलों का तात्पर्य लिखने का प्रयत्न किया है। अब हम सफल हुए अथवा असफल, इस बात का निर्णय विद्वान् लोग करेंगे। वे कृपाकर इस बात को भी ध्यान में रखेंगे कि शास्त्रीय विषय सरल से सरल करने पर भी कहानी नहीं बन सकता।
पद्यानुवाद
हमने एक और कुचेष्टा की है। वह है उदाहरण-पद्यों का पद्यानुवाद। इसका कारण केवल यह है कि पद्य में जो एक प्रकार की बन्धकृत विशेषता होती है, वह केवल गद्यानुवाद में नहीं आ सकती; और हमारी इच्छा थी कि हिंदी के