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क्या भारत एक राष्ट्र है?
 

की सुविधा के लिए हैं। यदि यह बात ठीक है तो शासन की सुविधा के अनुसार भारत के किसी प्रकार से भी प्रांतिक विभाग करने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। परन्तु यह सिद्धान्त कार्य में परिणत करने में बड़ी कठिनाई पड़ी थी। सन् १९०४ में बङ्गाल प्रान्त को शासन की सुविधा के लिए दो प्रान्तों में विभक्त करने पर बड़ा भारी आन्दोलन हुआ था। बङ्गाल के वे दोनों भाग अंग्रेज़ी शासन में ही थे; यह नहीं था कि अंग्रेज़ी सरकार ने पूर्वी बङ्गाल को चीन सरकार को दे दिया हो। यदि ऐसा किया जाता तो भारत को एक राष्ट्र मानने वाले लोगों का आन्दोलन करना उचित होता। वे कह सकते थे कि भारत का प्रत्येक भाग अंग्रेज़ी शासन में रहना चाहिए; उसका किसी दूसरी सरकार को दे देना भारत की राष्ट्रीयता का अपमान करना है। किन्तु भारत में बङ्गाल का पृथक् प्रान्तिक शासन होने का क्या तात्पर्य है? क्या इसका यह अर्थ नहीं है कि राज्य अथवा शासन की दृष्टि से भी भारत में कुछ स्वाभाविक विभाग हैं? ये विभाग केवल भौगोलिक स्थिति अथवा विदेशियों की शासन-सुविधा पर अवलम्बित नहीं हैं, किन्तु इन भागों की प्रजा की इच्छा तथा उनका सुख इनका सच्चा आधार है।

राज्य शासन की दृष्टि से भारत के अन्दर वास्तव में कुछ स्वाभाविक विभाग हैं जो आजकल सम्पूर्ण भारत पर विदेशी शासन होने के कारण स्पष्ट दिखायी नहीं पड़ते। ब्रिटिश प्रान्तों से इनकी कुछ कुछ तुलना की जा सकती है यद्यपि ये सरकारी