पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

.... उज्जयिनी 'पवन्तों कहलाता था। (मारत भौम ) किन्तु पुराव उभय सम्प्रदायके बौद्ध वसते थे। खुपन-सुयाने में उन्मयिनी नाम लिखा है। इसे विशाला और उज्जयिनीके निकट हो अशोकराजनिर्मित एक स्तूप पुष्यकरहिनी भी लिखते हैं। अवन्तौ देखिये। पाश्चात्य देखा था। किन्तु अब वह समृधि कहां! सबको सब प्राचीन ऐतिहासिक टलेमो और पेरिप्लासने इस कालके गालमें चली गयो। प्राचीन उज्न यिनी पर्यन्त शहरका पोजिनि ( Ozene ) नाम लिखा है। टले भूगर्भ में गाढ़ी है। विशाला अपने समस्त रन खो मौका लेख है-उज्जैन तियास्तनको राजधानी है। दुःखमें सन्नासे अपना मुख देखा न सकी। इसीसे समझ (Ptolemy, Geog. Bk. vii. c. I. 53) 'तियास्तम' । पड़ता है-वसुन्धराको गोदमें अन्तहित हो गई है। 'चष्टन' शब्दको अपलिपि है। प्राचीन मुद्रा और भाजकल यह प्राचीन अवन्ती नगरी नहों। उसीके शिलालिपिहारा समझ पड़ा है-पहले चष्टन नामक उत्तर पाख पर बसी एक नूतन नगरीको उज्जयिनी एक राजा मालव और धारके निकटस्थ प्रदेशपर राज्य | कहते हैं। इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता-प्राचीन करते थे। शकराजवंश देखो। अवन्तीको भूमिके मध्य निहित हुये कितना काल पेरिप्लास्ने भी लिखा है (भडौंच) बारिगजके पूर्व बोता। निश्चित भूमिसात् होनेका क्या कारण है ? उज्जैन है। इस नगरमें राजा रहते थे। उज्लेमसे इसके सम्बन्धमें नाना मतभेद देख पड़ते हैं। वर्तमान साधारणके व्यवहारको अकोक, वर्तन, उत्कष्ट मलमल, उज्जयिनौसे दक्षिण वनमें प्राचीन अवन्तो विलुप्त राईका बढ़िया कपड़ा और नानाप्रकार उपादेय द्रव्य यी है। मट्टी खोदते खोदते प्रायः १०।१२ हाथ पाता था। नीचे आज भी प्राचीन नगरका चिन्ह मिलता है। प्राचीन कालमें अनेक राजचक्रवर्ती यहां सिंहासन भूगर्भ में प्रस्तरका बहुत प्रभङ्ग स्तम्भ गाढ़ा है। पर बैठ राजत्व कर गये हैं। किन्तु दुःखका विषय है __इसका भी प्रमाण नहीं मिलता-वर्तमान नगर उनका प्राचीन इतिहास प्रतिस्प ही मिलता है। किसने बसाया था। अलाउद्दीन खिलजीके समय सिंहलियोंके महावंश नामक बौर ग्रन्यमें लिखा है- उज्जयिनी मुसलमानोंके हाथ सगी । १२८५ से चन्द्रगुप्तके पौत्र प्रयोकने अपने पिताके राजप्रतिनिधि १३८८० तक इसके शासनका भार एक राज- रूपसे कुछ कालतक उज्जैनमें राजत्व किया था। प्रतिनिधि पर रहा। पोछे वे स्वाधीन हो गये थे। अशोकके पिता पाटलिपुत्रके राजा थे (साके रा १५३१ ई० तक स्वाधीन भावसे राजकार्य चला। उसके शताब्द पूर्व )। उसके प्रायः शताब्द बीतनेपर (ई. से | बाद गुजरातके नवाब बहादुर शाहने उज्जयिनीपर १५७ वर्ष पूर्व ) एक बौद्ध यति प्रायः ४०००० शिष्यों के अधिकार किया था। १५७१ ई०को फिर अकबर समभिव्याहारमें उबयिनौरख दक्षिणगिरिमठसे सिंहल | बादशाहने इसे नीता। १६५८ ई०को उज्जयिनीके द्वीपको गये थे। निकट ही औरंगजेब और दारा दोनों भाईयोंमें घोर- बहुकाल पीछे राजा विक्रमादित्यको इस नगरीका तर युष हुपा था। १७८२ ई.को होलकरने इसे अधिकार मिला। उनके राजत्व कालमें कालिदास ले अनेक स्थान जला दिये। उसके बाद उज्जयिनी प्रभृति नवरबने उज्जयिनीको चमकाया था। पूर्व से धियाके हाथ गयी थी और उन्होंने परम सुखसे कालीन इन्द्रप्रस्थ, हस्तिनापुर प्रभृति प्राचीन नगरोंको उसका राजत्व भोग किया। भांति विरमारियो भासन चलाते समय इसको भी ___ उज्जयिनी एक पवित्र तीर्थस्थान है। इसे हिन्दू, समृधि रही। ई०के वें सताब्दमें चीमा परिव्राजक बौर, बैन प्रभृति भित्र-भित्र सम्पदायने अपना पुण्य- बुपन-चुप सब्जयिनी (उ-जे-जैन-न) देखने पाये | चेव माना है। स्कन्दपुराणके भवन्तिखहमें उन- थे। उस समय भी यह नगरौबहुतसे सोगोंकी वासभूमि यिनी तीर्थका विस्तृत विवरब लिखा है। रही। हिन्दु नृपसिके अधीन हीनयान और महायान यहां महाकाल नामक शिवलित विद्यमान है।