पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१७७

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उन्नयिनी नीचेसे निकालनेका पादेश दिया। भीमने वैसाही सरस्वती देवीका मन्दिर अति प्राचीन है। इसमें किया था। समस्त वृष बारी बारी निकल गये। अनेक मृत्तिकाको मूर्तियां हैं। विक्रमादित्य यहाँ शेषमें एक वृष किसीप्रकार आगे न बढ़ा। भीम उसे | आकर देवोको पूजते थे। जैसे ही पकड़नेको चले, वैसे ही वृषरूपी केदारेश्वर - उज्जयिनीको कालियदी देखनेकी चीज़ है। भूके मध्य जा छिपे। कुछदिन पोछे वे हिमालय- वृन्दावनके कालियदहमें जैसे श्रीकृष्णका मन्दिर, इस पर पाविर्भूत हुये। उनका मस्तक हिमालय पर कालियदीमें भी वैसे ही देवस्थल दृष्टिगोचर होता है। पहुंचा, किन्तु देह उज्जयिनी में ही रहा। कालियदीके मध्यस्थलमें होपाकार भूमिखण्डपर जल- __ इस नगरमें असंख्य भैरवको मूर्तियां और भैरवके प्रासाद विद्यमान है। पहिले इस स्थानपर भी विष्णु- मन्दिर विद्यमान हैं। शिप्रा नदीके दक्षिण कूलपर मन्दिर था। 'मोरात सिकन्दरी' नामक मुसलमानी भैरवगढ़ है। प्राकार अखके खुर-जैसा बना है। इतिहासके मतसे इस जलप्रासादको नसीरुद्दीन्ने शिप्राके किनारे-किनारे अधक्रोश विस्त त गढ़के बनवाया था। किन्तु देखनेसे सहजमें ही समझ प्राचीर और बड़े बड़े हार खड़े हैं। पश्चिम हारसे पड़ता है-यह प्रसाद अधिक प्राचीन है। कालिदासने भैरवगढ़में घुसनेपर वामदिक् एक वृहत् देवालय देख 'जलयन्त्रमन्दिर'का उल्लेख किया है- पड़ता है। इसी देवालयमें कालभैरवको मूर्ति प्रति ___ “निशा: शशाच्चतनीलराजयः क्वचिद्दिचित्र' जलयन्त्रमन्दिरम् ।” ष्ठित है। मूर्ति बहुत प्राचीन और अपरको अपेक्षा (मतुसंहार ११२) श्रेष्ठ है। यहांके लोग कहते हैं-कालभैरव ही उज्ज अनुमानसे कालिदासका जलयन्त्रमन्दिर उक्त यिनीकी रक्षा रखते हैं। माधवजी सेंधियाने काल जलप्रासाद ही है। ऐसा ठहरनसे मानना पड़ेगा- भैरवका मन्दिर बनवा दिया है। विक्रमादित्यके समय भी यह जलप्रासाद था। सम्भ- उज्जयिनीय दशाश्वमेध घाटके निकट 'अङ्कपात' वतः राजा विक्रमादित्य ग्रीष्मकालपर जाकर जल- मामक एक तीर्थ है। यह स्थान वैष्णवगणको अति | प्रासादमें निवास लेते थे। वही कालिदासने व चक्षुसे प्रिय है। वैष्णव कहते हैं-यहां कृष्ण और बल- देख ऋतुसंहारमें लिखा है। आजकल न होते भी राम सान्दीपनी मुनिके पास पढ़ने आये थे। जिस मानते हैं, कि पश्चात् जलप्रासादके चारो ओर कितने स्थानपर उन्होंने प्रथम अङ्कपात लिखना प्रारम्भ किया, ही फौवार छटते थे। निर्माणको प्रणाली अति अद्भत उसीका नाम लोगोंने 'अवपात' रख लिया। अङ्क- है। जिस द्रव्यादिसे प्रासाद बना है, वह सर्वा शमें पातमें विष्णुको विश्वरूप मूर्ति विद्यमान है। मलहार उत्कृष्ट है। क्योंकि जलके स्रोतसे उसका चिह्न भी राव-किसीके मतसे रङ्गराव अप्पाने अङ्गपातका नहीं बिगड़ता। प्राचौरमें सर्वोपरि श्रीकृष्णको मूर्ति वर्तमान मन्दिर बनवाया था। अहल्या बाईकी खुदी है। उनके चारो ओर गोपी इस्त जोड़े दण्डाय- निर्दिष्ट वृत्तिसे यहां प्रत्यह १० ब्राह्मण भोजन करते मान हैं। दूरसे दृश्य बहुत ही सुन्दर देख पड़ता है। हैं। यहांसे थोड़ी दूर दामोदर, गोमती, विष्णुसागर |... जलप्रासादमें यातायातके लिये पुल बंधा है। पूर्व प्रकृति कुण्ड विद्यमान हैं। इस स्थानपर (अवन्तिखण्डोत) ब्रह्माकुण्ड था। - उपरोक्त मंन्दिरादि व्यतीत मङ्गलेखर, सहस्त्र- मालम पड़ता है-ब्रह्मकुण्डका ही नाम कालियदी पड़ा धनुकेश्वर, दत्तात्रेय, चामुण्डा, सरस्वती प्रभृति देवस्थान | है। क्योंकि यह नाम अबन्तिखण्डमें नहीं मिलता। भी प्रसिद्ध हैं। अवन्तिखण्ड में २४ माता और ३० किन्तु अबुलफजल प्रभृति मुसलमान ऐतिहासिकने देवको पूजाका उल्लेख है। आजकल केवल लक्ष्मी, कालियदोघी लिखा है। सर टोमस रो जहांगीर सरखती और अनपूर्णा मूर्तिको अर्चना होती है। बादशाहके साथ यहां आये थे। ..., (नारदीग्रपुराफ सत्चरखवं.७८ १० देखिये) : उन्नयिनीके सिद्धनाथका घाट प्रति मनोरम स्थान