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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१९३

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२४२ उताल-उत्कणिका उताल (विजापुर)-मध्यप्रान्तके सम्भलपुर जिलेको . जो दूसरी बात बिचारता हो। ( पु०) ५ अभिलाष, एक जमीन्दारी। यह बड़गढ तहसील में लगती और खाहिश। ६ अवसर, मौका। सम्भलपुर नगरसे ३८ मील दक्षिणपूर्व पड़ती है। उत्कच (स• त्रि०) उगतः उन्नतो कचोऽस्य । १ केश- भूमिका परिमाण ८० वर्गमील है। चावल, दाल, शून्य, बेबाल। २ उन्नसकेश, खड़े बालवाला। ऊख, रूई और तेलहनको उपज अधिक है। उताल ३ पुराणवर्णित भारतके पूर्व प्रान्तवासी दुर्धर्ष जाति- या विजापुरग्राममें एक सुन्दर तड़ाग और विद्यालय | विशेष । घटोत्कच देखो। बना है। इसके प्रभु प्रकृत गोंड हैं। १८२०ई० पर उत्कच्छा (सं० स्त्री०) छन्दो विशेष। इसमें छः पाद अंगरेज सरकारसे पूछ सम्बलपुरको राजा महाराज रहते हैं। प्रत्येक पादमें ग्यारह एकाक्षरमाना लगती हैं। साहीने स्थानीय नरेश गोपी कुलताको उताल उपाधि उत्कञ्चक (सं० वि०) कूर्मासकविहीन, जो चोली दिया था। उन्हींके वंशज आज भी जमीन्दारी अपने या मिर्ज ई न पहने हो। हाथ रखते हैं। उत्कट (सं० वि०) उत्-कट्-अच् । तीव्र, तेज, उताली, उताल देखो। मामूली हिसाबसे ज्यादा। २ मत्त, मतवाला। उतावल (हिं. स्त्री०) १ व्यग्रता, अस्वास्थ्य, वैचैनी ।। ३ व्याप्त, भरा हुभा। ४ अधिक, ज्यादा। ५ श्रेष्ठ, २ साहस, हिम्मत। शीघ्रता, शिताबी। (क्रि.वि.)। बड़ा, घमण्डी। ६ विषम, नाहमवार, जो बराबर ४ सत्वर, फौरन्। (वि०) ५ आशकारी, जल्दबाज़, न हो। ७ कठिन, मुशकिल। (पु.) ८ मत्त गज, तेजी देखानेवाला। मतवाला हाथी। ८ मत्तगजके गण्डस्थलसे टपकने- उतावला (हिं. पु०) धैर्यरहित पुरुष, बेसन प्रादमी।। वाला द्रवपदार्थ, हाथोके मत्थेसे झड़नेवाला मद । "उतावला सो बावला धौरा सो गम्भीर।" ( लोकोक्ति) १० शरकाण्ड, रामशर। ११ क्षुद्र क्षुपविशेष, एक उतावली (हिं० स्त्री०) १ त्वरा, जल्दी। २ चापल्य, छोटा भाड़। १२ इक्षु, अख। १३ रक्त क्षु, लाल बैचैनौ। जख। १४ मद, नशा। (लो०) १५ वृक्षभेद, उताहल (हिं क्रि० वि०) शीघ्र-शीघ्र, जल्द-जल्द, एक पेड़। १६ लताविशेष, सालसा। १७ गुड़त्वक, तेजीके साथ। दालचीनी। १८ तेजपत्र, तेजपात। उताहिल, उताहल देखो। उत्कटा ( स० स्त्री) सैंहलोलता, ऊटकटारा, सफ़ेद उताहो (सं० अव्य०) १ विकल्प-अथवा, या इत्यादि। | खंघची। संहली (उतकटा) कट, उष्ण, कृमिघ्न, २ प्रश्न-क्या, क्यों वग़ रह। ३ विचार-अवश्य, हां! दीपन एवं कोष्ठशोधन होती और कफ, खास तथा प्रभृति। वायुजनित रोगको शमन करती है। (राजनिघण्ट) उताहोखित् (स.अ.) अथवा, पाया, या। उत्कटा उष्ण, तिक्त, वृष्य और रुचिकर है। यह उतूल (सं० पु०) जातिविशेष, किसी कौमके लोग। मूत्रकृच्छ्र, पित्त, वात, मेह, तृष्णा, हृदरोग और उढण, उऋण देखो। विस्फोटकको मारती है। इसका वीज शीतल, वृष्य, उतै (हि.क्रि.वि.) उस पाख, उधर, वहां, उत। तृप्तिकर और मधुर प्रकीर्तित है। (वैद्यकनिघण्ट) उतैला (हिं. पु.) १ माष, उड़द। (क्रि.वि.) उत्कटासन, उत्कटकासन देखो। २ शीघ्र-शीघ्र, जल्द-जल्द। उत्कटकासन (सं० लो०) कठिनासन, नशिस्त- उल्क (सं• त्रि०) उत्क निपातनात् । १ उत्सुक, चारजान, चौखट बैठक, पालती मारकर बैठनेको खाहां। २ वस्तु विशेषको प्राप्तिका अभिलाषी, जी। हालत। किसी खास चीजके पानका खाहां हो। ३ पश्चात्ताप- उत्कणिका (सं० स्त्री०) उच्छ्रित शुद्रांश, उठाया. कारी, अफमुर्दा, उदास। ४ अनुपस्थित, गैरहाजिर, । हुआ रेजा या टुकड़ा। .... .