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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/१९८

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उत्कल (उड़ीसा) १९७ वासी दीर्घकालसक लड़ते रहे। युद्ध में असंख्य कलिङ्ग आक्रमण मारा था। क्षीरधारके हारते और मारे वासी मारे गये थे। ऐसी उत्कट नरहिंसा देख । जाते भी उनके भ्रातुष्प त्र बहुसैन्य सामन्त बढा अशोकका हृदय करुणासे पिघल उठा था। दन्तपुरोको दौड़ पड़े। गुहशिव कहों निस्तार न ___अशोकप्रियदर्गे देखो। देख अपने प्रिय जामाता उज्जयिनोके राजकुमार दन्त- मौर्यशका प्रभाव घटने पर जैनराजवंशने प्रबल | कुमारसे कह गये-हमारे न रहते पवित्र बुद्धदन्तको हो कलिङ्ग जीता था। खण्डगिरिको हाथीगुफासे | सिहल पहुंचा दीजियेगा। गुहशिवके युद्ध में मारे उत्कीर्ण सुवृहत् शिलालिपिमें पराक्रान्त भीखुगज | जाने पर दन्त कुमार राजकन्याके साथ छरवेशमें पवित्र खारबलका परिचय मिलता है। खारबेलने मगध दन्त उठा सिंहलको चलते बने। उसी समयसे पर्यन्त देश जीत शुङ्गवंशको मथुरा भगा दिया था। ! बुद्धका दन्त सिंहलमें रखा और पूजा गया। सम्भ- जैनवंशके बाद कलिङ्गमें गुहवंशका अभ्युदय हुआ वतः उक्त शिवगुहके वंशन दन्तपुरोको खो उत्- था। सिंहलके 'दाथाबंश' नामक पालीग्रन्थमें कलके गड़जातका आश्रय लिया और क्रम क्रमसे कलिङ्गाधिप गुहशिव वा शिवगुहका नाम मिलता उसमें अपना प्रभुत्व फैला दिया। गौड़कविने उनके है। इस प्राचीन ग्रन्थको पढ़नेसे समझ सकते हैं वंशधरको 'नानारत्नकूट-कुट्टिमविकटकोटाटवीकण्ठी- शाकबुद्धक निर्वाण पर क्षेम नामा उनके एक शिष्यने रवो दक्षिणसिंहासनचक्रवर्ती कहा है। चितासे बुद्धदेवका पवित्र दन्त उठा कलिङ्गाधिप ब्रह्म मगधर्म गुप्तसाम्राज्यको प्रतिष्ठाके साथ उत्कल भी दत्तको जाकर दिया था। उन्होंने अपनी राजधानी उसौमें मिल गया। गुप्त-सामान्यके पतनपर यह पर मणिमाणिक्यखचित एक सुवर्ण-मन्दिर बना उसमें प्रदेश सोमवंशीय राजगणके अधिकारमुक्त हुआ था। पवित्र दन्त को रखा। इसी दन्तके कारण कलिङ्गको गुप्तराजवंश और सोमवंशी शब्द देखो। । राजधाननि दन्तपुर नाम पाया था। ३७० से ३८. सोमवशीय राजगण मादलापुञ्जोमें केशरिवंशीय ई०के बीच उत्तराधिकार-सूत्रसे शिवगुह दन्तपुरके भी कहाते थे। इसी केशरिवंशके समय उत्कलमें सिंहासन पर बैठे। पहले वे ब्राह्मणके अत्यन्त भक्ता नाना स्थानोंपर बहु शिवमन्दिर बने। उनका भग्ना- रहे। उन्होंने ब्राह्मणवर्गके परामर्शसे अपने पूर्वतन वशेष आज भी विद्यमान है। गङ्ग वा गाङ्गेय-वंशके राजावोंके समान दन्तका पूजना छोड़ दिया था। अभ्युदयसे सोमबंशीय राजगणका प्रभाव घट गया था। किन्तु किसी नैमर्गिक घटनासे डिग पीछे वे शक ९८८में गाङ्गव वशतिलक चोड़गङ्गका अभु- भी दन्तके कट्टर भक्त बने। ब्राह्मणवर्गने इससे ! दय हुआ। इस विषयके कितने ही शिलालेख और बिगड़ पाटलिपुत्राधिपके निकट कलिङ्ग-नरेशपर ताम्रफलक मिले हैं, जिन्हें देखनेसे हम निम्नलिखित अभियाग लगाया था। उन्होंने बुद्धदन्तके साथ गुह वृत्तान्त समझ सके हैं- शिवको पकड़ लानके लिये चित्तयान नामक एक ____शक ८८८ के कई वर्षवाद महाराज चोड़गङ्ग उत्- सामन्तराज भेजे। गुहशिव उनकी गति रोक न कलके सिंहासन पर बैठे। इनके पिता प्राच्य गङ्गवशके सके और दन्तकै साथ पाटलिपुत्र नगरको जानपर २य राजराज रहे। माताका नाम राजसुन्दरी था। वाध्य हुये थे पाटलिपुत्रमें दन्त पानसे बहु अभूतपूर्व इनको कई रानियोंका नाम-कस्तूरिकामोदिनी, काण्ड उठने लगे, जिससे पाटलिपुत्राधिप भी उसके इन्दिरा, चन्द्रलेखा, सोमला, महादेवी, लक्ष मौदेवो, भक्त बन गये। उनके मरने बाद गुरुशिव फिर उक्त | और पृथिवी महादेवी रहा। कामार्गव, राघव, दन्तको अपनी राजधानी ले आये थे। किन्तु वे राजराज, अनियकभीम और उभावलभ पुत्र थे। निश्चिन्त बैठ न सके। अल्प दिन पीछे ही चोरधार इन्हें लोग अनन्तवमी, चालुक्यगङ्ग, गाङ्गेयपर पौर नामक किसी पार्श्ववर्ती नृपतिने उनके राज्य पर विक्रमगडः उपाधिसे सम्बोधन करते थे। ये अत्यन्त Vol III.. 50