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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२०५

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२०४ उत्तिष्टवम-उत्तंस वृष्य, वातकर और रस एवं पाकमें मधुर है। (सुश्रुत) उत्क्षेप (स० पु०) उत्-क्षिप धञ्। १ अर्ध्वक्षेपण,. २ पेचक, उल्लू । ३ कुररपक्षी,किसी कि.स्मका उकाब। उछाल। २ दूरोकरण, फैकफांक । ३ प्रेरण, ४ चीत्कार, शोर, हल्ला। चालान । ४ वमनकार्य, छांट, उलटी। ५ मन्दिरके उक्लिष्ट वम (सं० क्ली) लिष्टवत्म नाल रोगविशेष, ऊपरका स्थान । (त्रि०) ६ उत्क्षेपकारक, फेंकनेवाला। आंसू पैदा करनेवाले मवादको बढ़ती। क्लिष्टवां देखो: उत्क्षेपक (सं० वि०) १ अर्व निक्षेपकारी. उछा- उत्क्लेद (स. पु०) १ पाट्रभाव, तरी, भोगनेको लने वाला। २ आज्ञा देनेवाला, जो हुक्म लगाता हालत। है। (पु.) ३ वस्त्रको अपहरण करनेवाला, जो उतले दन (सं.क्लो०) उतले द देखो। कपड़ेको उछालकर चुरा लेता हो। तन दिन् (सं• त्रि०) आद्रं, तर पड़नेवाला, जो ___ "उत्चे पकन्धिभेदौ करसन्दशहीनको।" ( याचवका २२७७) भीग रहा हो। उत्क्षेपण (सं० क्लो०) उत्-क्षिप-त्यु ट। १ ऊर्ध्व- उत्त श (सं० पु०) १ उत्तेजना, अशान्ति, हलचल, क्षपण, उछाल। २ प्रेरण, चालान। ३ वमनकार्य, झगड़ा। २ वमनच्छा, बलगमका बिगाड़। ३ रोग, छांट, उलटी। ४ उदञ्चन, सूप। ५ व्यजन, पड़ा। बीमारी। ६ षोड़शपण, सोलह, पणको एक नाप। ७ न्याय- उतने शक (स.पु०) विषमय कौट विशेष, एक मतसे पञ्चकर्मान्तर्गत कर्मविशेष । जहरीला कोड़ा। यह अग्निप्रकृति होता है। इसके "उतचे पषं ततोऽवच्चे पचमाकुचन तथा । काट खानसे पित्तजन्य रोग लग जाते हैं। प्रसारयश्च गमनं कर्माण्य तानि पञ्च च ॥” (भाषापरिच्छेद) उतकेशन (सं० त्रि.) उत्तेजना देनेवाला, जो उभा- उत्खचित (सं० त्रि.) मिथित, मखलत, मिला रता या बेतरतीबी पैदा करता हो। हुआ। उत्क्लेशिन, उतले शन देखो। उत्खरिन् (सपु०) देव विशेष । उतल पान-बस्ति (सं० पु. स्त्री०) वस्तिभेद, पिच- उत्खला (सं० स्त्री.) उत्-रखल-अच-टाप । मुरा कागको एक दवा। यह पहले एरण्डवीजादि क कसे नामक गन्धद्रव्य, एक खु.शबूदार चीज । मुरा देखो। उदल शनक लिये लगायी जाती है। उक्त कल्कमें उत्खात (सं. वि.) उत्ख न ता। १ उम्मलित, एरण्डवीज, मधुक, पिप्पली, सन्धव, बचा और हबुषा- उखाड़ा हुथा।२ उत्पाटित, गिगया हुआ। ३ विना- फल डालते हैं। (वैद्यकनिधए) शित, मारा हुआ। ४ खनित, खोदा हुा । “रथेनानुस्- उत्क्षिप्त (सं० वि०) उत्-क्षिप-।-१ क्षिप्त खातस्तिमितमतिना।" (यकुन्तला) (को०) ५ उत्खनन, गट्टा। उछाला या उठाया हुषा, जो ऊपर चढ़ा दिया गया उत्खातक लि (सं० पु०) कोड़ा विष, एक खेल। इसमें हो। २ निराकत, घटाया हुघा, जो फेंका गया हो। शृङ्गादि दाग वृष एवं मजकी भांति मृत्तिका खोदते हैं। १ दशैकृत, खारिज किया हुआ। (पु.) ४ धुस्तर- उत्खाता, उत्सातिन् देखो। कल, धतूरेका समर। उत्खातिन् (सं.वि.) १ माशक, बरबाद करने- उवक्षिप्तकम्पन (सं० लो०भूमिकम्यविशेष, किसो वाला, जो खोद डालता हो। २ उत्खननयुक्त, जिसमें विस्मका जलजला, एक भूडोल। इस प्रकारसे कम्प- पानपर भूमि मानो उछन्त पड़ती है। | उत्खेद (सं० पु. ) उत्-खिद भावे घत्र । छेदन, उतक्षिप्तिका (म० स्त्रो०) उत्-क्षिप-क्तिन्-कन् टाप । काटछांट। कर्यालङ्कार विशेष, कानका एक गहमा। यह अर्ध- उत्त (सं० वि०) उन्द केदने त, गुदविदेति पक्षे गावा- चन्द्राकार रहती और कर्ण के उपरि भागमें पहनी भावः । श्रा, तर, भीगा। (हिं.) उत और उत देखो। बाती है। उक्तंस (सं० पु.) उत्-तसि-पच् हलचेति घन वा।