पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२०७

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२०६ उत्तमफलिनी-उत्तमा अन्तका एकार खो देता है,जैसे-मुझको, मुझसे,मुझ-, उत्तमसंग्रह (स० पु.) १ सम्यक् संग्रहण, उम्दा पर और मुझमें। मैंका सम्बन्धकारक "मेरा' और गिरफ्त। २ निर्जनमें पर पत्नीके साथ परस्पर 'इम'का' हमारा है। कोई कोई समझते हैं कि पालिङ्गन उपवेशनादिरूप प्रेमालाप, दूसरेको उत्तम पुरुषमें संस्कृत और अंगरेजी व्याकरण नहीं औरतके साथ अकेले मिलना-जुलना और हंसना मिलता। किन्तु यह बात झठ है। क्योंकि उत्तमका बोलना। अर्थ प्रथम (First) ही है। उत्तमसाहस (संपु.). १ स्म त्यक्त दण्ड विशेष । ३ जैनशास्त्रानुसार संसार में सबसे उत्कृष्ट ऐश्वर्यवाले इसमें १०००, ८००० वा १८०००० पण जुर्माना देना पुरुष। परिवर्तनशील कालके एक अपेक्षासे जैन पड़ता है। "परस्य पतनीयाक्षेपे कृते तूत्तमसाहसम्।” (याज्ञवल्का) शास्त्रमें दो विभाग किये हैं-उत्सर्पिणी, और अव- २ उत्कट दण्ड, कड़ी सज़ा-जैसे सर्व ख हरण, अङ्ग. 'सर्पिणी। इन दोनों कालोंमेंसे हर एकमें तिरेसठ तिरे कर्तन और व्यापादन । सठ उत्तमपुरुष हुआ करते हैं। वे इसप्रकार हैं-चक्र- उत्तमा (स• स्त्रो०) उत्तमप-टाप। १ उत्कृष्ट वर्ती १२, तौथ कर २४, नारायण ८, प्रतिनारायण, स्त्री, उम्दा औरत । २ खोयादि नायिकाभेद। यह और बलभद्र। शलाका और चक्रवर्ती प्रादि शब्द देखो। । मन्दकारिणी होते भी प्रियतमके प्रति हितकारिणी उत्तमफलिनी (स स्त्री०) उत्तम फल-णिनि-डीप। रहती है। ३ दुग्धिका, दूधी । ४ मनःशिला। टुग्धिका, दूधी। ५भूम्यामलको,भुयिं आंवला। ५ त्रिफला; आंवला, हर उत्तमभद्र-बबईप्रान्तके एक क्षत्रिय राजा । नासिकको और बहेरा। ६ मुस्ता, मोथा। ७ शूकदोषविशेष, एक गुफामें जो शिलालिपि मिली, उसपर यह बात जकर बढ़ानेको दवा लगानेसे पैदा हुई एक बीमारी। लिखी है-मलयके लोगोंने एक बार स्थानीय क्षत्रिय इसमें शूक और अजीग से लिङ्गपर मुहमाषके समान नृपति उत्तमभद्रपर चढ़ाई की थी। बहरात नहपान रक्तपित्तको रक्तपिड़का पड़ जाती हैं। (सनुत) नृपतिके जामाता और दोनोक उशवदातके पुत्र | उत्तमाङ्ग (स. क्लो) उत्तम प्रशस्तमङ्गम, कर्मधा। इनके साहाय्यको सैन्य लेकर आगे बढ़े, जिससे | १ मस्तक, सर । मस्तक देखो। २ मुख, दहन । शत्र पीछे हटे और उत्तमभट्र के अधीन हुये थे। "उत्तमाङ्गोडवाच्या ठाब्राह्मणयेव धारणात् ।" (मनु १९३) उत्तमण (स० पु.) उत्तम-मृणमस्य। ऋणदाता, उत्तमाधम (सं• त्रि.) उच्च नीच, भला-बुरा, कुज दिहन्दा, महाजन, साह । बढ़िया-घटिया, छोटा-बड़ा। उत्तमर्णिक (सं० पु०) उत्तम देयत्वे नास्तास्य, ठन् । उत्तमाधममध्यम (सं. त्रि.) उच्च, नीच और उत्तमण, कर्ज दिहिन्दा, मालिक । मध्य, ऊंचे, नीचे और औसत दरजेवाला। "राज्ञाधमर्थिको दाप्य: साधिताद्दशकं शतम् । उत्तमाम्भस (स. क्लो०) तुष्टि विशेष, एक आस्- पञ्च पञ्च शतं दाप्य: प्राप्तार्थोडोत्तमर्णिकः।” (याज्ञवल्का रा४३) दगी। सांख्य मतानुसार यह हिंसा छोड़नसे मिलती उत्तमणिन, उत्तमर्थ देखो। . है। योगमें इसका नाम सार्वभौम-महाव्रत है। उत्तमलाम (सं• पु०) विपुल कलान्तर, बड़ा उत्तमाय्य (वै० त्रि.) उठाया या देखाया जाने- फायदा। वाला, जो मनाया जानेवाला हो। उत्तमवारि (सं० लो०) १ तण्डुलोदक, चावलका उत्तमारणी (सं० स्त्रो०) १ इन्दीवरा। २ इन्द्र- पानी। २ उत्कष्ट जल, उम्दा पानी। वारुणी। ३ इन्द्रचिर्भिटी। ४ योधामल्लिका, जूही। उत्तमवेश (सं० पु०) शिव, महादेव। उत्तमार्ध (सं० पु०) १ अन्तिम अर्ध वा भाग, उत्तमवैद्य (सं० पु.) तसाङ्ग-वेदाध्ययन वैद्य, । आखिरी पहा या हिस्सा। २ उत्कृष्ट प्रधे, निहायत उम्दा तबीब, बढ़िया डाकर। उम्दा पहा ।