२१२ उत्तरवस्त्र-उत्तराधिकारिन् टपक पड़नेसे अपराहको टुग्ध,यूष वा मांसरसका परि- “साचिनामपि यः साक्ष्य' स्वपक्ष' परिभाषताम्। मित मात्रामें भोजन कराये। इसी नियमसे तीन . श्रवणाच्छावणादापि ससास्त्तरस'शकः ॥” ( नारद ) या चार वस्ति लगाये। दूषित शुक्र वा शोणित, २ अन्यके कथन पर साक्षा देनेवाला, जो दूसरेकी बात मूत्राघात, मूत्रदोष, योनिदोष, शुक्रदोष, शर्कराश्मरी, सुनकर गवाही देता हो। वस्तिशूल, वड्यशूल, मेढशूल, समस्त मेहरोग और उत्तरसाधक (स. त्रि.) १ शेष भागको सम्पर्ण अन्यान्य उत्कट वस्तिजात रोग उत्तरवस्तिसे आरोग्य करनेवाला, जो बचे हुये कामको पूरा करता हो जाते हैं। २ सहायक, मददगार। ३ उत्तरको प्रतिष्ठित करने- उत्तरवस्त्र (सं. लो०) उत्तरीय, चादर । वाला, जो जवाब लगाता हो। उक्तरवादिन (सं.वि.) उत्तर-वद-णिनि। १ प्रति- उत्तरहनु (३० पु.) हनुका उपरि भाग, जबडेका वाद्य, मुद्दालह। ऊपरी हिस्सा। (अधर्व शार) "माक्षिष भयतः सतमु भवन्ति पूवादिकः । उत्तरा ( स० स्त्री०) १ विराट्राजको कन्या । पपई ऽधरीभूते भवन्तात्तरवादिनः ॥” (याज्ञवल्का २०१७) अभिमन्युके साथ इसका विवाह हुआ था। अभिमन्य देखो। २ प्रतिवादी, जवाब देनेवाला। ३ अन्यसे पश्चात्वत्व (अव्य०)२ उत्तरको ओर, शिमालको तर्फ । रखनेवाला, जो दूसरेसे पोछे हक रखता हो। उत्तराखण्ड (स ली.) उत्तरीय विभाग, शिमाली उत्तरवायु (सं० पु.) उत्तरदिगभव मारुत, शिमाली। हिस्सा। यह भारतमें हिमालयके समीप है। हवा, उतराही। यह शौत, स्निग्ध, दोष प्रकोपकर, उत्तरात् (सं० अव्य० ) वाम पोरसे, बाई तर्फ पर। लंदन, प्रकृतिस्थको बलद, मृट् और क्षतक्षीण विषा उत्तरात्तात् (वै. प्रव्य) उत्तरसे, शिमालको तर्फ। तके लिये अधिक गुणकर होता है। (मदनपाल) उत्तराधर (स० वि०) १ उच्चनीच, ऊंचा-नोचा, बड़ा उत्तरवारुखी (सं० स्त्री०) इन्द्रवारुणी, इन्द्रायन। छोटा। "उत्तराधरा इव भवन्तो यन्ति ।” (शतपथब्राह्मण ५।३।४।२१) उत्तरवारन्द्र (सं० पु.) १ वङ्गदेशका उत्तरांश अर्थात (लौ०) २ऊव एवं निम्न ओष्ठ, नीचे जपरका होंठ। दिनाजपुर और रङ्गपुर जिला। २ वङ्गन्देशके वारेन्द्र उत्तराधिकार (स० पु०) सम्पत्तिका क्रमिक खत्व.. ब्राह्मणों की एक शाखा। | मालकी सिलसिलेवार वरासत, बपौती। उत्तरवेदि (सं. स्त्री.) १ वेदोक्त वैदीका एक उत्तराधिकारिता (सं० स्त्री०) उत्तराधिकारिका स्वत्व... मेद। “६ बैदी हावनी भवतः। न उतरस्यामेव वैदी उत्तरवैदि' । सिलसिलेवार वरासत। उपकिरति न दक्षिणस्याम् ।” ( शतपथब्राह्मण शारा६) उत्तराधिकारित्व (सं० लो०) उत्तराधिकारिता देखो। २ कुरुक्षेत्रके समन्तपञ्चक तीर्थका अपर नाम। उत्तराधिकारिन् (सं० त्रि०) पूर्व स्वामीके अभावमें "तरन्तकारन्तुकयोर्यदन्तरं रामदानाञ्च मचक्रुकस्य च । धनादिके अधिकारी पुत्र प्रभृति, वारिस। इस देशमें एतत् कुरुचे वसनन्तपञ्चकं पितामहस्योत्तरवैदिरुच्यते ॥” . स्मतिक मतसे किसी व्यक्तिक मरने पर प्रथम पुत्र, (भारत वन ८३ प्र०) | उसके अभावमें पौत्र और उसके भी अभावमें प्रपौत्र तरन्तुक, परन्तुक, रामद और मचक्र कका पुत्रको भांति समान अधिकारी होता है। प्रपौत्र मध्यवर्ती स्थान कुरुक्षेत्र-समन्त पञ्चक कहाता है, जो पर्यन्त न रहनसे पत्नी, उसके अभावमें स्वामिकुल और पितामहको उत्तरवेदि समझा जाता है। उसके भी अभावमें पिटकुल अधिकार पाता है। इस उत्तरमक्थ . ( स० को०) सक्थिका उत्तर भाग, धनको स्त्री जीते भी भोगेगी, किन्तु निज स्त्रीधनको बाई रान। भांति दे-ले न सकेगी। उसके प्रभावमें उसकी कुमारी, उत्तरसाक्षिन् (स' त्रि.) १ प्रतिवादीका साधी, उसके प्रभावमें वाग्दत्ता और उसके भी अभावमें मुद्दालहका गवाह। विवाहिता (पुत्रवती)को उत्तराधिकार मिलता है।
पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/२१३
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