२३३ उदयनाचार्य-उदयपुर वा मेवाढ़ सम्पादनको मङ्गलमयी किरणावली बनायो। आज कुसुमाञ्जलि कारिकाकार रामभद्र सार्वभौमने भी इन्हें भी उनके वंशधर शास्त्रविद विहान हिज मिथिलामें मिथिलादेशीय लिखा है। घर घर पढ़ाया करते हैं। ठीक ठीक बता नहीं सकते-उदयनाचार्य किस फिर 'भादुड़ी-वंशावली' नामक वारेन्द्रब्राह्मणों के समय हुये थे। 'न्यायसारविजय' नामक ग्रन्थके कुल ग्रन्थमें लिखा है- रचयिता भट्टराघवने इनके श्लोक उड़त किये हैं। यह "हस्पतिसुतः श्रीमान् भुवि विखवातमङ्गलः । ग्रन्थ १२५२ ई० में बना था। फिर देखते हैं-८८८ धर्मस' स्थापनावि बौद्धविध्वंसहेतवे। शक (८७६ ई०)में वाचस्पति मिश्चने "न्यायसूचीनिवन्ध" स्पात उदयनाचार्य वभूव शङ्करो यथा। रचा था। उदयनाचार्य ने इन्ही वाचस्पतिमिथ-विरचित ब्रह्मतत्त्वप्रकाशाब चकार कुसुमाञ्चलिम् ॥ न्यायवार्तिक-तात्पर्यको 'तात्पर्यपरिशुद्धि' नाम्नी एक स एवोदयनाचार्यों बौद्धविध्वंसकौतुकौ। टीका लिखी है। इससे मानना पड़ता है-यह ८७१ कुल्लू के भइमाश्रित्य भट्टाखा मयूरं तथा ॥" और १२५२ ई०के बीच अवस्थित थे। इधर वारेन्द्र इससे समझ पड़ता है-उदयनाचार्य कुल्लू क उदयनाचार्य भादुड़ी ई०के १४ शतकमें गौड़पति और मयूरभट्टके समसामयिक रहे। उन्होंने बौद्धोंके गणेश के समय विद्यमान थे। सुतरां दोनो विभिन्न विध्वंसको जन्म लिया था और कुसुमाञ्जलि नामक व्यक्ति ठहरते हैं। ग्रन्थ लिखा था। ___ भक्तिमाहामाके मतसे उदयनाचार्य जगन्नाथ वारेन्द्र-समाजके पण्डितोंका विश्वास है-वारेन्द्र देवका दर्शन लेने श्रीक्षेत्र पहुंचे थे। वहां पुरीके कुल में परिवर्त-मर्यादाके प्रतिष्ठाता और कुसुमाच्नलि पण्डोंने माल्यचन्दनादि हारा इन्हें पूजा। वाराणसी कार उदयनाचार्य भादुड़ी अभिन्न व्यक्ति हैं। वारेन्ट्र में इनके जीवको लोला सान हो गयी। कुलाचार्यके ग्रन्थमें भी ऐसा हो कहा है। 'सम्बन्ध मैथिल उदयनाचार्यविरचित कुसुमाञ्चलि न्यायका निण य' नामक ग्रन्थको देखते राजशाहीके अन्तर्गत उतकृष्ट ग्रन्थ है। इसमें वैदान्तिक, सांख्य, मीमांसक निसिन्दा ग्राममें पर उदयन रहते थे। वि लोके और बौद्धमत काट ईश्वरका तत्त्व निरूपित है। अपने भट्टाचार्य बताते हैं-माणिकगञ्जके अन्तर्गत बालीयाटी बनाये किरणावली नामक ग्रन्थमें कणादसूत्र के प्रशस्त- ग्राममें उदयनायें भाटुड़ी बसते थे। आज भी इस ग्रामके पाद भाष्यटीकासे उदयनाचार्य ने जैसा भाव विस्तृत एक उच्च स्थानको लोग 'भादुड़ी-भिटा' कहते हैं। मङ्गलाचरण लिखा, वैसा किसी टोकाके ग्रन्थमें "सएवोदयनाचार्यश्चिकाव कुसुमाञ्जलिम्। देखने को नहीं मिलता। मैथिल तथा वन्देशक तीर्थपर्यटने लव तस्मादगौड़े प्रचारितम् ॥” (लघुभारत) दार्शनिक पण्डित मात्र उभय ग्रन्थका विशेष आदर लघुभारत-रचयिताके मतसे इन्होंने तीर्थपर्यटन ! करते हैं। एतद्भिन्न बौद्धमतको सम्पूर्ण काट 'आत्म- कालमें कुसुमाञ्जलि ग्रन्थ पाया और गौड़ देशमें | तत्त्वविवेक' नामक एक उत्कृष्ट तत्त्वग्रन्थ भी इन्होंने लाकर चलाया था। बनाया है। इस स्थल पर कुछ गड़बड़ पड़ती है। भक्ति- उदयनीय (स.वि.) अन्त वा फलसे सम्बन्ध रखने- माहात्मा मिथिलामें इनका जन्मस्थान ठहराता है, उधर वाला, जो पूरा करता है। सम्बन्ध निर्णय निसिन्दा ग्राममें निवास बताता है। उदयपर्वत (स• पु०) उदयाचल। . फिर कोई कोई उदयनाचार्यको वङ्गदेशवासी भी सम-उदयपुर वा मेवाढ़-राजपूतानेके अन्तर्गत और देशीय झते हैं। (वङ्गदर्श न ३य खण्ड ४८८ पृष्ठ) . राजाके अधिकार-भुक्त एक करद राज्य। इससे उत्तर किन्तु अधिक विश्वासजनक मत है-उदयना वृटिशशासनाधीन अजमेर; दक्षिय बांसवाड़ा, डूगरपुर, चार्यने मिथिलामें जन्म लिया और गौड़में पाया था।। प्रतापगढ़ ; पूर्व बूंदी, कोटा, जावरा, टोंक ; पश्चिम Vol III. 59
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