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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३०४

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उपटा-उपदंश पटा (हिं० वि०) १ नष्टभ्रष्ट, वरबाद। (पु०)! "गुर्थ पिटमावर्य स्वाध्यायाच पतापिनः ।” (मनु १।११) ।। ३ चमेंट, ठोकर, धक्का। उपतारक (सं० त्रि.) उप--णिच-ख ल। सन्ता. पटाना (हिं. क्रि०) स्थानान्तरित करनेको रक, उमड़ उठनेवाला, जो बह चला हो। आदेश देना, उखड़वाना, हटवाना। . “यत्वै तदुपतारका: शन्ते ।" ( कौशिकसू० ) पटारना (हिं० क्रि०) स्थानान्तरित करना, हटा देना। उपतिष्य (सं० लो०) उपगतं तिष्यम्, अत्या. पड़ना, उपटना देखो। समा०। १ पुनर्वसु। २ अश्लेषा। ३ बौद्ध-शास्त्रोक्त पढौकन (स'. लो०) उप-ढौक भावे ल्य ट। सिद्धभेद। धर्मपति नामक किसी ब्राह्मणके औरस १ उपहार, नज, भेंट। २ उत्कोच, रिशवत । और सारोके गर्भ से इनका जन्म हुआ। बुद्धने पतक्ष (सं० पु.) नाग वा गन्धर्व विशेष । इन्हें अपने धर्मको दीक्षा दी। अपर नाम सारीपुत्र पतट (स अव्य.) १ तटके निकट, किनारपर।। था। (महाववदान) (पु०) २ प्रान्त, बगल। उपतीर (सं० अध्य०) सामीप्यादौ अव्ययीभावः । पतन्त्र (सं० लो०) उपगतं तन्त्रम् । शिवोत तौरसमीप, किनारे पर। तन्त्र जैसा ऋषिकत तन्त्र। वाराहीतन्त्र के मतसे- उपतुला (सं. स्त्री०) स्तम्भके नव समान अंशमें कपिल, जैमिनि, वशिष्ठ, नारद, गर्ग, पुलस्त्य, भार्गव, तोय। यह वास्तुविद्यामें वर्णित है। याज्ञवल्क्य, भृगु, शुक्र, बृहस्पति प्रभृति मुनिकत तन्त्र उपतूल (सं० अव्य.) तूलोपरि, रुईके ऊपर। उपतन्त्र है। उपटण्य (सं० पु०) सर्प, सांप। तृणमें छिपकर पतपत् (स• पु०) आन्तरिक ताप, भीतरी गर्मी। बैठनेसे सपंका यह नाम पड़ा है। पतप्त (सं० त्रि.) उप-तप-त। १ सन्तप्त, गर्म, उपतैल (सं. लो.) अभ्यक्त तेल, लगाया हुआ तेल । जलाभुना । २ पीड़ित, तकलीफमें पड़ा हुआ। उपत्यका (सं० स्त्रो०) उपसमोपे आसन्ना भूमिः, ३ कातर, डरपोक । उप-त्यकन् । उपाधिम्यां त्यकन्नासनारूढ़योः। पा ५।२॥३४॥ १ पर्वत पतप्ट (सं० पु.) उप-तप च । १ उपतापक, | को निकटस्थ भूमि, उहाड़के नोचेको जमोन् । २ पत्र तपा डालनेवाला । २ उपताप, बिगडी गर्मी। तके आधारका वन, उहाड़की जड़का जङ्गल । ३ अधि- ३ रोग, बीमारी। स्थका, घाटो। ... पतप्यमान (सं० त्रि०) पीड़ित, जो तकलीफ़ “उपत्य का पर्वतस्यासन्न स्थलम्।" (सिद्धान्तकौमुदी) उठा रहा हो। | उपदंश (सं० पु.) उप-दंश कर्मणि धञ्। मेढ़- पताप (सं० पु० ) उप आधिक्ये तप आधार घञ्। रोग विशेष, पातशक, भातश, गरमी, लिङ्गको एक १ त्वरा, जल्दी । २ उत्ताप, सरगर्मी । ३रोग, बोमारी। भावमिथने कहा-हस्त नख वा दन्तका बीमारी। ४ अशुभ, खराबी। ५ पौड़न, तकलीफ- आघात पड़ने, प्रक्षालन न मिसनेसे अपरिष्कार बनने, दिहो। ६ दुःख, रज। अतिरिक्त स्त्रीसंसर्ग रहने, दृषित योनिमें चलने और पतापक (सं० त्रि०) उप-तप-णिच्-ख ल् । १ सन्ताप अन्यान्य नाना कारण लगनेसे शिश्न देशमें उपदंश जनक, गर्मी पैदा करनेवाला। २ कष्टदायक, तक- रोग उत्पन्न होता है। यह पांच प्रकार है-वातिक, लीफ देनेवाला। पैत्तिक, श्लैष्मिक, सानिपातिक और रक्तज।* उपतापन (सं०वि०) उप-तप-णिच-ल्य । १ सन्वा सुश्रतने कहा-अतिमैथुन, संसर्गके प्रभाव, पक, जला डालनेवाला। (लो)२ सन्ताप, जलन । • "इस्ताविघातान्नखदनघामादधावनादत्य पसेवनाहा । उपतापिन् (सं० वि०) उप-तप-णिनि । १ सन्तापी, योनिप्रदोषाच्च भवन्ति शिव पञ्चोपद'शा विविधोपचारैः॥" . जाला अलनेवाला। रोगी, बीमार। (भावप्रकाश मध्य च भाग)