उपनिवेश ३२१ फिर उस देशके राजान भाइयके तीन पुत्रोंको वह । भारतकी तरह मैक्सिकोके सितल नामक स्थानमें राज्य बांट दिया था। तीनो पुत्रोंका नाम कुमार, पर्वत खोदकर बने मन्दिरादि देखनेसे सहज मेघती और हरिण था। उन्होंने स्व-स्व नामक अनु ही माना कि हिन्दुवोंने वहां जा उस सकल सार ग्राम पत्तन बसाये। कुछ दिन बाद तीनो भाई शिल्प-कार्यको सुसम्पन्न किया था। वहां प्रस्तर- स्व-स्त्र वासस्थान छोड़ एक सुखसेव्य पर्वतपर पह'चे। खोदित अनेक देवमूर्ति भी देख पड़ती हैं। वे उसी जगह उन्होंने अपने पिटदेवके स्मरणाई देमेतर अनेकांशमें इस देशको हिन्दू देवदेवीके सदृश हैं। और केशानी नामक दो बृहत देवालय प्रतिष्ठित किये दक्षिण-अमेरिकाके टिटिकाका इदके तौरपर भी थे। उन दोनोको मूर्ति मुकुट और पीताम्बर पहने हैं।* भारतवर्षीय शिल्प-चातुर्य प्रकटित है। मेक्सिकोवासी इस समय अरमेनियाके अनेक राजपुत्र उसी देवोपासक गणेशका चित्र खींचते हैं। जिस देशमें पहले हस्ती सम्प्रदायमें मिल गये। किन्तु यह धर्म वहां अधिक मिलता न था, उस देशमें इस मूर्तिका कल्पित होना दिन न टिका। कुछ काल बाद ईसाई धर्म चलानेके | भी सम्भव नहीं। यानामसे आविष्कृत बहुसर शिला- लिये सेण्ट ग्रेगरी इस प्रदेश में पहचे थे। इसी समय फलको सूर्यवंशीय 'इन्द्र' उपाधिधारी राजगणका नाम अरमेनिया-वासी हिन्दुवोंके साथ ईसाइयोंका घोरतर लिखा है। सम्भवतः अङ्गके सूर्यवंशको कोई-कोई युद्ध हुआ। अनेक बार युद्ध होने केबाद प्रायः चार राजकीय शाखा अमेरिका जा 'इ' नामसे परिचित पांच सहस्र देवोपासक निहत और हिन्दुवोंके नाना हुई। वह अमेरिकामें 'रामनीतोत्रा' नामक महोत्सव स्थानीय देवमन्दिर विध्वस्त एवं चीकृत हुये। फिर करती थी। यह भारतीय प्रसिद्ध उत्सव रामलीलाका प्राणके भयसे किसी-किसीने ईसाई धर्म अवलम्बन अनुकरण जैसा समझ पड़ता है। किया था।" प्रकाशानन्द नामक एक प्रसिद्ध ब्रह्मचारी काशीमें रहते थे। उन्हीं के मुंहसे किसी-किसीने सुना, कि भारतीय बणिक दो सहस्र वतसरसे भी बहुपूर्व ग्रेट समुद्रपथसे अरबके मस्कट नामक नगर पर्यन्त उन्होंने ब्रटेन और जर्मनी में जाकर वाणिज्य चलाते थे। सुप्रसिद्ध गमन किया था। वे कहते कि सङ्कट नगरमें स्थान- रोमक ऐतिहासिक तासीतास्के वर्णित उत्तर देशका स्थानपर दो-एक हिन्दू रहते थे। किसी-किसीके कथ इतिहास उद्धार कर उनके बन्धुवर प्लिनीने लिखा नानुसार अफरीकाके पूर्वाशपर जोतार (सुखतर है-ई० पूर्व ६० अब्दको कितने ही भारतवासी वाणि- होप) नामक द्वीपमें काम्बोज हिन्दूवोंका वास था। जाके उपलक्ष्य में समुद्रपथसे तूफान हारा विताड़ित हो ___ इधर इसका भी प्रमाण मिला, कि सुदूरवर्ती अमे जर्मन उपकूलपर जा पड़े थे। सुयेबियराजने उन्हें रिका खण्ड में किसी समय हिन्दुवोंने जा उपनिवेश उपहारस्वरूप गलके प्रधान शासनकर्ता मैटेलासके किया। जिस समय कोलम्बस्का जन्म नहीं हुआ, जिस पास भेज दिया। समय प्राचीन अरबवासियोंकी अमेरिकाका सन्धान अब देखना चाहिये-प्राचीन युरोपीयोंने किस पर्यन्त न लगा,उस समयसे भी बहुत पहले हिन्दुवोंका तरह और किस लिये अपनी जन्मभूमि छोड़ भिन्न अमेरिकामें आना जाना रहा। मध्य अमेरिकामें ! भिन्न देशमें जा उपनिवेश स्थापन किया। जिन प्राचीन मन्दिरादिका भग्नावशेष पड़ा है, उनके जो जाति पूर्व कालको युरोपमें फनिक वा फि- गठनको प्रणाली सर्वाशमें दक्षिण-भारत एवं भारत | निसीय नामसे प्रसिद्ध रहीं, वही जाति भारतवर्ष में सागरीय दीपस्थित हिन्दू मन्दिरको तरह है। वैदिक युगपर पणि कही गयी। भारतमें आर्य- वैदिक प्रतिष्ठासे पहले पणि जातिने बहु स्थानपर . * वह सहज ही कृष्ण बलराम जैसी समझ पड़ती है। अधिकार जमा लिया था। प्राच्य भारतसे उता जातिने Vol III. 81
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