पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३४७

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उपसद्वतिन्-उपसर्य उपसतिन् ( स० वि०) उपसटुका व्रत करने। 'उपसम्भाषा उपसान्तु नम्।' ( सिद्दान्तकौमुदी) वाला। इसमें यजमानको परिमित टुग्ध पान, अना- | उपसर (सं० पु. ) उप-मृ-अप। १ निर्गमन, वृत भूमिपर शयन और ब्रह्मचर्य तथा मौनावलम्बन पहुंच। २ गो प्रभृतिक गर्भाधानार्थ वषादिका मेथ- करना पड़ता है। नाभियोग, गाय वगै रहका पहला हमल। (त्रि०) उपसना (हि. क्रि०) १ दुर्गन्धि होना, बदबू देना। ३ प्राप्त होनेवाला, जो आ पहुंचा हो। २ गलित होना, सड़ जाना । (पु.)३ उपवास, फाका। उपसरण (संक्लो०) उप-स-ल्य ट। १निर्गमन, उपसन्तान (सं० पु०) १निकट सम्बन्ध, नजदोको बहाव। २ शरण के अर्थ निगमका स्थान, पनाह रिशता। २ सन्तति, औलाद । लेनको जा पहुंचनेको जगह । उपसन्धा ( स० अध्य०) सन्धमाके समय, शाम के वक्त । उपसग (स.पु.) उप-सृज-धज । उपसर्गाः क्रिया- उपसन्न (सं० त्रि०) उप-सद-त! १ उपस्थित, योगे। पा १।४।५९ । १ भूकम्पादि उत्पात, मूडोल वर्ग- पहुंचा हुआ। २ निकटागत, पास आया हुआ। रहका बखेड़ा। २ अनिष्ट, बुराई। ३ रोगविकार, ३ उपसेवक, नौकर-चाकर। ४ पूजित, पूजा हुआ। बीमारीका एव । ४ व्याकरणोक्त प्रपरादि अव्यय शब्द। उपसन्नता (सं० स्त्री०) नकट्य, पडुच, पड़ोस। यथा-प्र, परा, अप, सम, अनु, अव, निम, निर, टुस, उपसन्नवर्तन (सं० ली.) दुष्ट व्रणविशेष, खराब टुर, वि, आङ, नि, अधि, अपि, अति, सु, उत, अभि, • जखम । प्रति, परि और उप। ५ योग, जोड़। ६ दुःख, उपसन्यास (सं० पु.) त्याग, परहेज़, बरतरफो। तकलीफ। ७ अपशकुन। ८ पिशाचादिकी बाधा। उपसमाधान ( स० लो०) उप-सम-आ-धा-ल्युट्। ८ मृत्यु का चिह्न, मौतका निशान् । १राशीकरण, ढेर लगानेका काम। 'उपसमाधान' राशी-| उपसर्गवृत्ति (सं.वि.) उपसर्गका आचरण रखने- करणम्।' (सिद्धान्तको०) २ समिध् निक्षेपपूर्वक जला- वाला, जो उपसर्गको तरह चलता हो । नेका काम। 'उपसमाधाय समिधः प्रक्षिप्य प्रज्वाल्य ।' उपसर्जन ( सत्रि०) उप-मुज-ल्य ट। १देवादि (आश्वलायन गृह्यभाष्ये नारायण १८९) उत्पात, बदशिगूनीकी बात। २ अप्रधान, मातहत उपसमाहार्य (सं०वि०) एकत्र किये जाने योग्य, शख स । जो तरतीब दिये जाने के काबिल हो। "उपसर्जन प्रधानस्य धर्मतो नोपपद्यते। उपसमिध (सं० अव्य.) अग्निकाष्ठके समीप, जला पिता प्रधान प्रजने तस्माद्धमैण तहजेत् ॥” (मनु १।१२६) नेको लकड़ीके पास। ३ व्याकरणानुसार-समासका प्रथमान्तनिर्दिष्ट वा उपसम्पत्ति (सं० स्त्री० ) उप-सम्-पद-क्तिन् । एक विभक्तियुक्त पद। ४ पाणिनिसूत्रोक्त शब्दभेद । अभिनव सम्पत्ति, पहुंच, किसी हालतपर श्रा (त्रि.)५ सन्मार्गसाधक, भलो राह देखानेवाला। जानेकी बात। उपसर्तव्य (सं० वि०) साहाय्यार्थ समीपगन्तव्य, 'उपस पत्तौ अभिनवत्वे ।। (सिद्धान्तको०). मददको पास पहुंचा जाने के काबिल । उपसम्पन्न (सं• त्रि.) उप-सम्-पद-क्त। १ प्राप्त, उपसर्प (सं० पु०) प्राप्ति, पहुंच। पाया हुआ। । २मृत, मरा हुआ। ३ यज्ञार्थ मृत उपसर्पण (सं० लो०) उप-सृप भावे ल्यु ट्। समीप (पशु), यन्नके लिये मरा हुआ। गमन, पास पहुंचनेको बात। “श्रोविये तूपसम्पन्ने विरावममुचिर्भवेत्।” ( मनु ५॥८१) ____“न तावदयमुपसर्पणकालः ।" (विक्रमोर्वशो) 'उपसम्प्राप्य (स अव्य०) प्राप्त होकर, पहुंचके। उपसपिन् (स• त्रि.) उप-सृप गतौ णिनि । उपसम्भाषा (सं० स्त्री०) उप-सम्-भाष भावे.अ- समीपगन्ता, पास पहुंचने वाला। टाप् । सान्त्वना, बातचीत, दोस्ताना तरगोन। . : | उपसर्म्य (स' भव्य० ) समीप जाकर, पास पहुंचके ।