पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/३५२

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उपही-उपाख्यान ३५१ उपही (हिं० पु०) अन्यदेशीय पुरुष, गैर मुल्कका । उपांशुयाज (वै० पु.) उपांशु अनुष्ठे यो याजः । आदमौ। यन्नविशेष। (शतपथब्रा० १।६।।२३) उपहत (सं० वि०) उप-वे-क्त सम्प्रसारणे दीर्घः। उपांशुवध (स० पु०) निजैनषध, पोशीदगोमें किया समाइत, बुलाया हुआ। हुआ कृत् ल समाइति (सं. स्त्री०) उप-ढे सम्प्रसारणे तिन् । उपाइ, उपाउ (हिं.) उपाय देखो। आह्वान, पुकार। उपाक (वै० त्रि.) १ परस्पर सब्रिहित, जुड़ा हुआ। उपहत (संत्रि .) उप-ह-त। १ उपहारस्वरूप 'उपाके परस्पर समौपगते । मलयजुर्भाश्ये महीधर २३१) दत्त, नजरानेके तौरपर दिया हुआ। २ आनीत, निकट, पासवाला। (निघण्टु, २०१६) लाया हुआ। ३ बाहृत, इकट्ठा किया हुआ। ४ उत् उपाकक्षस् (वै० त्रि.) चक्षुके सन्मुख वर्तमान रूपसे सृष्ट, चढ़ाया हुआ। दण्डायमान, जो प्रांखके सामने हाज़िर खड़ा हो। उपहोम (स० पु.) प्रधान यज्ञके समीप अग्नि- उपाकरण ( स० क्लो०) उप-श्रा-क-लुट। १ संस्कार सोमादि दश देवताओंमें प्रत्येकके उद्देश्यसे देय पूर्वक श्रुतिग्रहण । २ संस्कारपूर्वक पशुवध । दशाहुति और दश दक्षिणायुक्त होमविशेष ।। ३ प्रारम्भ, शुरू। ४ समीपानयन, नजदीक (शतपथब्रा० ११ १२८.१७) लानका काम। उपङ्कर (वै० क्लो०) उप-रू, आधार ध। १ निर्जन उपाकर्म (सं० ली. उप-प्रा-व-मनिन् । १ उपा- स्थान, पोशीदा जगह। करण, संस्कारपूर्वक वेदग्रहण । (मनु ४।११६) उत्सर्ग देखो। "चरन्तमुपहरे नद्यः।" (ऋक् ८६६।१५) २ भारम्भ, शुरू। 'पहरे पत्यन्तगृह्यस्थाने ।' (सायण) उपावत (स. त्रि०) उप-प्रा-क-क्त। १ यन्नमें २ सामीप्य, पड़ोस । (पु.) २ रथ, गाड़ी। हननके अर्थ कृत संस्कार, देवोद्दश्यसे वध्य । २ प्रारब्ध, ४ वक्रता, टेढ़ापन। ५ अवसर्पिणी भूमि, उतार। शुरू किया हुआ। ३ स्तवस्तति द्वारा प्रेरित ।। सोमपात्रको वक्राकृति। ४ उपद्रुत, आफत ढानेवाला । (क्लो०) भावे क उपद्वान (सं० लो०) उप-ह्वे-ल्यु ट्। १ श्राद्वान ५ उपाकरण। ६ यत्रीय पशुका संस्कार। ७ आरम्भ, कार्य, पुकार। २ मन्त्रोच्चारणपूर्वक भावान। ( कात्या- शुरू। (पु.) ८ देवोह श्यसे वध्य पशु । ८ दुर्भाग्य, यन-ौ० शा१९) बदकिस्मती। १० अशुभसूचक, व्यापार, बादशिगूनौ । उपांशु (सं० पु.) उपगता अंशवो यत्र। १जप | उपाक्ष (सं० ली.) १ उपनत्र, चश्मा। (अव्य) विशेष। चक्षुःसमीप, आंखके सामने । "शनैरुच्चारयन्मन्त्रमौषदोष्ठौ प्रचालयेत्। उपाख्य (स० त्रि.) चक्षुके द्वारा प्रेक्षणीय, जो किञ्चिच्छन्दवरं विद्यादुपांग: स जपः स्मृतः॥" (नारसिंहपुराण) आंखसे देखा जा सकता हो। ईषद् ओष्ठ हिला धीरे-धीरे मन्त्री उपाख्या (सं० स्त्री०) उप-प्रा-ख्या भावे अ-टाय् । जप किया जाता, वह उपांश कहलाता है। नप देखो। | १ प्रत्यक्ष, देख पड़नेवाला। २ शब्दादि द्वारा निर्वाचन। २ सोमाहुति विशेष। (अव्य.)३ निर्जन, चुपके- | उपाख्यान (सं० लो०) उप-प्रा-ख्या-लुट। १ पूर्व चुपके। ४ अप्रकाश, छिपकर। ५ अनुच्चारण, बे- वृत्तान्त कथन, गुजरे हालका बयान। २ विशेष बोले। ६ मौन, मन ही मन। (त्रि.) ० निगूढ़, कथन, बड़ा बयान। छिपा हुपा। ."चतुर्विंशतिसाहसौं चक्रे भारतसहिताम् ।। उपांशक्रीड़ित (सं० वि०) निर्जनमें क्रीड़ा किया | उपाख्यानै विना सावत् भारत प्रोच्यते बुधः ॥” (भारत-बादि ११०१) हा. जी तस्वसियेमें खेला गया हो। .. ३ उपन्यास, झठा किया । .... ..