पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४१७

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४१६ ऊर्णनाभ-ऊर्णनाभि मस्तक और उदरवाले उपरिभागके व्यवधानमें । पतङ्ग पकड़ जीविका निर्वाह और कोई जाल बना बादाम-जैसा एक कठिन फलक निकलता है। उदर अपर कोटादिके पाखेटको सुविधा करता है। किसी- उसमें मिला रहता है। फिर उदर पोला और ज्यादा किसी जण नाभको लोगों ने गर्तमें रहते देखा है। नर्म भी होता है। पैर पाठ रहते हैं। हरएक पैर में प्रायः सभी मकड़े गेंद-जैसे कोयेके बीच सात गाठ पडती हैं। आखिरी परमें कंघीकी तरहके अपना अण्डा रखते और अण्डा परिपुष्ट पड़नेपर दो कांटे निकले होते हैं। सम्मुखका जबड़ा पतङ्ग- कोयेको काटा करते हैं। जबतक फूटने का समय सा नहीं होता। वह सकल दिक को झुक सकता नहीं आता, तबतक कोई उस डिम्बाधारको अपने है। जबड़े के अन्त में तीक्ष्ण कांटा लगता है। निकट पृष्ठपर डाल चक्कर लगाता, कोई छातीपर चढ़ाता ही एक प्रति क्षुद्र छिद्र पड़ता है। उसी छिद्रसे और कोई उदरपर अति यत्नसे रख विघ्नबाधा बचाता विषाक्त तरल पदार्थ निकलता है। दोनों जबड़ोंके। है। एक-एक गोलेमें प्रायः २००० अंडे होते हैं। मध्य जिह्वा होती है। वह मुखके वहिरिन्द्रिय-जैसी गोलेसे बाहर निकलने पर बच्चे पहले अपनी माताके देखायी देती है। समस्त शरीरमें क्षुद्राकार चिपट जाते हैं। सचराचर इसके ८ चक्षु होते हैं। किसी किसौके मकड़ियां (जर्णनाभको स्त्रियां ) नाना प्रकारको वह और अति अल्प संख्यक के दो चक्षु रहते हैं। होती हैं और प्रायः सभी पुरुषको अपेक्षा बड़ी निक- उदरके उपरिभाग पर इधर उधर दाग पड़ जाते हैं। लती हैं। स्त्री-पुरुषका सहवास बड़ा भयानक होता फिर किसीके उसी स्थानपर अति परिष्कृत अनावृत है। यदि पुरुष स्त्रीका मन नहीं रिझाता, तो वह चर्म चढ़ा होता है। उसके हाथों मारा जाता है। ... जण नाभके फेफड़े में दो अथवा चार छिद्र रहते, सकल ही देशों में मकड़े नाना आकार और नाना जो उदर के तल भागपर पड़ते हैं। मबहारके निकट प्रकारके देख पड़ते हैं। फिर सभी मकड़े पतङ्ग सन्त त्पादक यन्त्र रहता है। उसपर भी सूक्ष्म अथवा क्षुद्र जीवको पकड़ मार डालते हैं। गङ्गातीरस्थ सूक्ष्म छिद्र होते हैं। उनके बीचसे अति सूक्ष्माकार | मुङ्गेर नगरके निकट कभी कभी एक बड़ा, काला और तन्तु निकलते हैं वही सूक्ष्मतन्तु एकत्र हो जालमें । लाल मकड़ा मिलता है। उसका जाल देखने में सूतके लच्छे-जैसे देख पड़ते हैं। तन्तुत्पादक यन्त्रसे उज्ज्वल हरित्वर्ण रहता और छहसे बारह हाथतक प्रथम एक प्रकारका चिपचिपा पदार्थ छूटता है।। लम्बा होता है। वही पदार्थ वायुके स्पर्शसे तन्तु के श्राकारमें परिणत हो हिमालयके निकट सफेद-लाल रङ्गके बड़े-बड़े 'जाता है। मकड़े होते हैं। कहते हैं, उनके जाल में पक्षी तक फंस रहते हैं। जालमें आ जानेसे बहुसंख्यक जर्णनाभ मिल जुल उसे खा डालते हैं। सिंहल द्वीपमें एक जातिका मकड़ा देख पड़ता, जिसका पैर अति कठिन होता है। छिप- कली. पर्यन्त उसी पदमें फंस जाती है। किसी स्थानपर क्षत पड़नेसे मकड़ेको लगाने पर रतस्राव रुकता है। विलायतमें मकड़ेका जाल जीनाम ज्योतिष शास्त्रीय दूरवीक्षणयन्त्रके तारको तरह व्यव- - तन्तुमें निकलनेपर यह नाना कारणोंसे जाल | हत होता है। बनाता है। कोई जाल में रहता, कोई जालसे कीट | जण नाभि, जर्णनाभ देखो। ..