पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

इन्द्र ४२ उ० और ट्राधि० ७५.५४ पू०पर अवस्थित है।। इति । नवौत् किम् मागधे यमभिननिष्ये इति। ऋतून संवत्सरान् प्रजाः पशून् लोकानित्यनुवन् ।” ( तैत्तिरीय ब्राह्मण) इन्दौर में महाराज और बड़ेलाटके पोलिटिकल एजण्ट | प्रजापतिने देवों एवं असुरोंको सृष्टि की, किन्तु रहते हैं। अहल्या-बाईने मल्हार-रावके मरनेपर इन्द्रकी उत्पत्ति न हुयो। देवगणने उनसे इन्द्र को भी यह नगर बनवाया था। गजप्रासाद, लालबाग, उत्पादन करने को कहा था। उन्होंने उत्तर दिया,- टकमालघर, हायोस्कूल, बाजार, पुस्तकालय, अस्य- हमारी तरह तपोवलसे तुम भी इन्द्रको उत्पादन तान्न पौर रुईका पुतलोघर देखने योग्य है। नगरसे करो। इसके बाद देवता तपस्या में प्रवृत्त हुये थे। मिती अंगरेजी रेसीडेन्मौका अस्पताल बहुत बढ़िया देवताओंने इन्द्रको अपने आत्मामें देख जन्म लेने की है। कृत्रिम नाक प्रस्तुत होती है। प्रार्थना की इन्द्र ने कहा-किस भाग्यमें जन्मग्रहण इन्द्र (सं० पु०) इदि परमैश्वर्ये रन्। ऋजेन्द प्य...... करें। देवताओंने ऋतु, वत्सर, प्रजा, पशु एवं इह वने रामानाः। उप २०२८। १ शक्र, देवराज । यह लोकादिका नाम ले दिया था। वेदोक्त प्राचीन देवता हैं। वैदिक ऋषि जिन देवता- ओंकी आराधना करते, उनमें इन्द्र ही प्रधान रहे। ___ उक्त श्रुतिके अन्य स्थल में, प्रजापति हारा इन्द्रका उत्पादन किया जाना भी लिखा है। (ऐतरेयब्राह्मण २।९) ऋक्संहिताकै मतमें इन्द्र निष्टिग्रौके पुत्र हैं। "निष्टियाः पुवमायावयोतय इन्दसवाध दह।” ( ऋक् १०१२०१।१२) इन्द्रकी पत्नी इन्द्राणी हैं ( ऋक् ।।१२।१२) । स्त्रीका नाम माताने इनको सहस्र मास और अनेक वर्ष गर्भ में प्रसहा भी लिखा है। (ऐतरेयब्राह्मण १२) रखा था। उसके बाद इन्द्रने वौर्य पूर्ण हो स्वयं वैदिक देवताओंमें इन्द्र प्रधान योद्धा एवं श्रेष्ठ जन्मग्रहण किया । उस समय इनको माता शक्तिसम्पन्न थे। ऋक्स हितामें इनके असीमगुणका प्रमत्त हो गयी थों। (ऋक् ४१८५-८) इन्द्र ने अपने परिचय पाया जाता है। पिताका पादहय ग्रहण कर उनको मार डाला। सामाचिकमें भी लिखा है- (ऋक.।१८।१३, तै० स०६।१।२६) “इन्द्रस्य वाहू स्थविरौ युवान्वाष्यौ सुप्रतिकावस ह्यो। इन्ट्रको माताका नाम एकाष्टका रहा- तौ युञ्जीत प्रथमौ योगे आगते याभां जितमसुराणां सहो महत् ॥” "एकाष्टका तपसा तप्यमाना समय पानपर (युद्धकालमें) इन्द्रने स्थविर, युवा, जजान गर्भमहिमानमिन्द्रम् । अनाधृष्य, सुप्रतीक और शत्र के असह्य वाहुद्दयको तैन देवा अस्त्रहन्त शवन् पहले ही योजना कर डाली, जिसके प्रभावसे असु- हन्ता द नामभवत् शचीपतिः॥" (अथर्व ३१०।१२) एकाष्टकाने घोरतर तपस्या करके महिमान रोंको शक्ति पराजित हो गयो। यह सुवर्णमय इन्द्रको उत्पन्न किया था। इन्होंके द्वारा देवताओंने कोड़ाधारण करते और सूर्य के अश्व या कभी हिरण्य- शत्र वापर आक्रमण मारा। शचीपति दस्यवों के मय रथपर चढ़ते थे। वायु इनके सारथो रहे । हन्ता हुये थे। सोम इन्द्र के जनक हैं। “सोम...जनिता (ऋक् ८३ ३।११, १०४०७, ८१॥२४, ८४८३ ) इन्द्रस्य” (फक साहा५) इन्द्रने अग्नि सहित पुरुषके मुखसे ___ अस्त्रों में वज्र और अङ्गश हो इन्द्र सदा व्यवहार जन्मग्रहण किया। “मुखादिन्द्रशाग्निश्च प्राणादायुरजायत ।"(पुरुषसूक्त) करते थे। ' उस समय वृत्र नामक एक असुर देव- ऋक्संहिताके मतमें इन्ट्र एक आदित्य होते भी हादश तामोंका सर्वदा अनिष्ट करता था। देवताओंने आदित्यसे भिन्न हैं। इन्द्र प्रजापतिसे भी उत. जाकर अपना दुःख इनसे कहा। इन्द्र देवताओंके पत्र माने गये हैं। (शतपथ १।१।१।१५) कहते हैं,- साथ वृत्र-संहारमें अग्रसर हुये थे। इस युद्ध में सब "प्रजापति बासुरानसजत। स इन्द्रमपि न असजत । तं देवा अनुवन्निन्द्र देवता भागे, केवल मरुद्गण और विष्णु साहाय्यार्थ नो जनव इति । सो अब्रवीद यथा अह' युग्मांस्तपसा असचि एवमिन्द्र' रह गये। इन्द्र ने वजके द्वारा वृत्रको विनाश किया। बनध्वमिति। ते तो अतन्ति ते आत्मनौन्द्रमपश्यत् । तमव्र बन जायस्व एतद्भिन्न अहि, शुष्ण, नमुचि, पिप्र, शम्बर, उरण,