पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४५

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४४ इन्द्रऋषभ-इन्द्रजनन उग्रधन्वा इत्यादि है। प्रति मन्वन्तर में इन्ट्रके नाम। इन्द्रकेतु (सं० पु० ) इन्द्रका ध्वज, विमानको पताका। पृथक पृथक पड़ते हैं-१ यज्ञ, २ रोचन, ३ सत्य- इन्द्रकोश, इन्द, कोष देखो। जित्, ४ विशिख, ५. विभु, ६ मन्त्रद्रुम, ७ पुरन्दर, इन्द्रकोष (सं० पु०) ६-तत्। १ मञ्च, मचान । ८ वलि, ८ श्रुत, १० शम्भु, ११ वैत, १२ ऋतधाम, | २ खटा, खाट । ३ नियह, फलोका काढ़ा। ४ निर्यास. १३ दिवस्पति और १४ शुचि । पेड़का दूध। ५ तमङ्गक, छज्जा। २ परमात्मा। ३ योगविशेष। ४ श्रेष्ठ। ५ कुटज- इन्द्रकोषक, इन्दकोष देखी। वृक्ष। रात्रि । ७ प्रथम । ८ राजा। . ज्येष्ठानक्षत्र । इन्द्रगिरि (संपु०) इन्द्रनामा गिरिः, शाक-तत् । १० धनवान् । ११ अन्तरात्मा। १२ धन। १३ इन्ट्रिय । महेन्द्रपर्वत। १४ छन्दोविशेष, चौदह संख्या। १५ बङ्गालमें दक्षिण- इन्द्रगुप्त (सं० लो०) १उगोर, खस। (वै० त्रि.) राढीय और बङ्गज कायस्थों का एक उपाधि। २ इन्द्रद्वारा रक्षित, जिसके इन्द्र हिफाज़त रखे। इन्द्रऋषभ (वै० त्रि०) इन्द्रको वृषभकी भांति रखने- इन्द्रगुरु (सं० पु०) १ वहस्पति । २ कश्यप। वाली, जिसे इन्द्र हामला बनाये। यह शब्द पृथिवीका इन्द्रगोप (सं० पु. ) इन्द्रः गोप: रक्षकः यस्य, बहुव्री०। विशेषण है। १ शकगोय, वीरबहटी। यह खेत और रक्तवर्ण इन्द्रक (सलो०) इन्द्रस्य धनिनः के सुखं यत्र, दोनो प्रकारका होता है। (वे. त्रि.)२ इन्द्रकटक बहुव्री०। १ सभाग्रह, बैठकखाना । २ इन्द्रका सुख । रक्षित। (ऋक् ८६६।३२ ) ३ मन्दरगिरि। इन्द्रघोष (सं० पु०) इन्द्र इति स्पष्टं घुष्यते, घुष्-घत्र । इन्द्रकर्णक (स' पु०) रक्तरण्ड, लाल रेडका पेड़। । इन्द्र। इन्द्रकर्मन (स.पु.) इन्द्रस्येव ऐश्वर्यान्वितं कर्मास्य । इन्द्रचन्दन (म. ली.) इन्द्रस्य इन्द्रप्रियं वा चन्दनम्, विष्णु, इन्द्रका काम करनेवाले भगवान् । ६-तत् वा शाक-तत्। १ हरिचन्दन, खेतचन्दन । इन्द्रकर्मा इन्द कर्मन् देखो। २ रक्तचन्दन, लाल चन्दन। इन्द्रकोल (स० पु०) इन्द्रस्य कोल इव । १ मन्दर- | इन्द्रचाप (सं० पु. ) इन्द्रे इन्द्रस्वामिके मेघे चाप इव, पर्वत। यह बड़ा पहाड़ है। नाना प्रकार मणि- शाक-तत्। १.इन्द्रधनुः। ६-तत्। २ इन्द्र-शरासन । मुक्ता विद्यमान है। शिशुपाल-वधक समय श्रीकृष्णने | इन्द्रचिभिंटा, इन्द चिभिंटी देखो। पहले यहां क्रीड़ा की थी। २ पर्वत, पहाड़। इन्द्रचिर्भिटौ (सं० स्त्री०) इन्द्रप्रिया चिभिटी, शाक- "न विषमैन्द कौलचतुष्यवधाणामुपरिष्टात।" ( मुश्रुत ) तत्। एक लता। वैद्यशास्त्र-मतसे इसके पर्याय हैं,- इन्द्रकुच्चर (अं० पु.) ऐरावत, इन्द्रका हाथी। समुद्र इन्दीवरा, युग्मफला, दीर्घवन्ता, उत्तमारणी, पुष्य- मन्थनके समय इन्द्र ने इसे पाया था। मञ्जरिका, द्रोणी, करम्भा और नलिका । इन्द्रचिभिटी इन्द्र कूट (सं० पु०) इन्द्रः ऐखर्यवान् कूटोयस्य, तिक्त, शीतल और श्लेष्मनाशक होती है। यह पित्त. बहती। एक पत। यह कैलासके निकट विद्यमान | कास, वणदोष और कमिको नष्ट करती है। चक्षुरोगमें है। “महामरु सकैलास इन्द कूटय नामतः।" (हरिवंश १७०।१५) इन्द्रचिभिटी विशेष उपकारी है। २ इन्द्रवारुणी। इन्द्रकृष्ट (सं० वि०) वष भाव क्त तत् अस्ति अस्मिन, इन्द्रच्छन्द (सं० लो०) इन्द्र-इव सहस्रनेत्रेण सहस्र- अर्श आदित्वात् अच् ; इन्द्रेण पन्द्रहेतुकं कृष्टम् । इन्द्र- गुच्छेन छाद्यते, छद-असुन्-ल्य ट निपातनात्। सहस्र- कर्षित, जङ्गलमें पैदा होनेवाला। दृष्टिपड़नेसे जो गुच्छ-हार, हज़ार लडीको माला। धान्यादि स्वभावत: उपजता, वह इन्द्रकष्ट बजता है। इन्द्रज (सं.पु.) १ इन्द्रयव। २ कुटजवृक्ष । "इन्द कष्ट वर्तयन्ति धान्ये ये च नदीमुखैः।" (महाभारत सभा० ५१६) | इन्द्रजतु (सं० लो०) शिलाजतु। 'इन्द, कृष्टः इन्द, वाकृष्ट न तु कर्ष खादि वियक यबापे : । (नीलकण्ड) इन्द्रजनन (स'• क्लो०) इन्द्रस्यात्मनः जननः देह-