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पृष्ठ:हिंदी विश्वकोष भाग ३.djvu/४६७

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एकला-एकवर्ण अपनी अपेक्षा उसकी शिक्षाका उत्कर्ष देख लज्जित। मन्दिर साधारण शिव मन्दिर-जैसा है। निम्नतल हुये। फिर ढुंढते-ढुंढते निकट पहुंच उन्होंने एक ! खेत मरमर पत्थरसे अलङ्घत है। मन्दिरका अभ्यन्तर लव्यसे परिचय पूछा था। उन्होंने कहा-मैं हिरण्य भाग स्तम्भके समूहसे शोभमान है। मध्यमें संहार- धनुका पुत्र और द्रोणाचार्यका शिष्य हूं। कौरवों रूपी महादेवको मूर्ति है। वही एकलिङ्ग नामपर और पाण्डवोंने यथासमय लौट प्राचार्यसे सब बता | बहु कालसे विख्यात हैं। लिङ्गके सन्म ख सुबहत् दिया। फिर निजैनमें मिल अर्जुनने द्रोणाचार्यसे ! नन्दीको मूर्ति है। एकलिङ्ग देववाले मन्दिरके कहा-आपने मुझे अपना सबसे अच्छा शिष्य बताया प्राङ्गणको चारो ओर अन्यान्य देवतावोंके भी मन्दिर था; किन्तु निषादकुमार ऐसे कैसे निकले ? द्रोण यह बने हैं। 'णकाल सोच अजनको ले एकलव्यके निकट एकलिङ्गभाक (सं० त्रि०) एक जातीय केशर विशिष्ट गये। एकलव्य भी निरतिशय भक्ति-सहकारसे उनका पुष्पयुक्त, जो एक ही जैसे फल रखता हो। अर्चनादि सम्पादन कर बोले-मैं आपका शिष्य इं। एकलु (सं० पु०) एक लुनाति, लू-क्विम् । ऋषि- गुरुने उत्तर दिया-यदि तुम प्रकृत रूपसे हमारे विशेष। शिष्य हो, दो हमारी दक्षिणा दे डालो। एकलव्यने एकलो (हिं० पु.) तासका एक्का । कहा-गुरो! बतलाइये क्या दक्षिणा द्र, कोई भी एकलौता (हिं. वि.) एकाकी, अकेला। यह वस्तु अदेय नहीं। एकलव्यको यह बात सुन द्रोणा- शब्द 'पुत्र' का विशेषण है। चायने कहा-यदि तुम दक्षिणा देना आवश्यक एकवकत्र (स.पु.) एक भीषणत्वेन मुख्यतम समझो, तो अपने दक्षिण इस्तका अङ्गष्ठ उतार दो। वक त्वं यस्य, बहुव्री०। १ असुर विशेष। (को०) एकलव्यने गुरुको ऐसी आज्ञा पर भी अविचलित २ एक मुखी रुद्राक्ष । चित्तसे हंसी-खुशी अपना अङ्गष्ठ काट दिया था। एकवचन (स क्लो) एकमेवक उच्यते अनेन, उससे उनका वाणप्रयोग एकबारगी ही न रुका सही, वच् करणे ल्युट। व्याकरणोक्त एकत्ववाचक विभक्ति, किन्तु वह लघुहस्तता जाते रहो। (भारत, आदि १३४ अ.) वाहिद। सु, अम्, टा, डे, ङसि, ङस् पौर डि सात एकला (हिं.वि.) एकाको, अकेला। विभक्ति एकवचन बोधक हैं। हिन्दीमें भी जिससे एक एकलिङ्ग (स. क्लो०) एक लिङ्ग यत्र, बहुव्री। पदार्थका बोध होता, वही एक वचन है। किन्तु १ सिद्धिके साधनका स्थान। पांच कोसके बीच जहां अनेक स्थलोंपर एकवचन और बहुवचनके रूपमें भेद अन्य लिङ्ग नहीं रहता, उसे ही सब कोई एकलिङ्ग नहीं पड़ता, जैसे-एक मनुष्य आया, बोस मनुष्य कहता है। ऐसा स्थान अतिशय सिद्धिप्रद है। आये । प्रायः हिन्दोके विहान संस्कृत शब्द न (पु.) एकं लिङ्ग पुंस्त्वादि यस्य । २ एकलिङ्गक बिगाड़ एकवचन और बहुवचन दोनों में समान शब्द, अजहल्लिङ्ग। अन्यलिङ्गक शब्दका विशेषण रूपसे रखते हैं। बनते भी इसका लिङ्ग नहीं बदलता। एक पिङ्गल-! एकवत् (सं० वि०) एकोऽस्यास्ति, एक-मतुप, मस्य नेत्ररूपं चिई यस्य। ३ कुवेर। एकपिङ्ग देखो। वः। १एकसंख्याविशिष्ट, अकेली अदद रखनेवाला। ____४ मेवाड़वाले राजपूतोंके प्रधान उपास्य देव। उदय- (अव्य.) एकस्येव, एक-वति । २ एकके न्याय, पुर राजधानौसे ४ कोस उत्तर गिरिपथमें एकलिङ्ग एककी तरह। देवका मन्दिर बना है। चारो पार्ख पर गगनस्पर्शी एकवद्भाव (स० पु.) एकेन तुल्यो भावः भवनम्, गिरिशृङ्ग हैं। उनसे अनेक सुनिर्मल निझर अविराम ३-तत्। शब्दनिष्ठ एकवचनान्तरूप कार्य, बहुतोंका गतिमें प्रवाहित हैं। इस गिरिमालाके सकल वृक्ष मजमूवा। एकचिङ्ग देवके नामपर उत्सर्गीकृत हैं। इनका एकवर्ण (सं० वि०) एको वर्णो यत्र, बहुव्री.। LEASEARE